राष्ट्रमंडल सम्मेलन में फंसता श्रीलंका
श्रीलंका,भारत और कैनेडा के बहिष्कार के बाद श्रीलंका में होने वाला राष्ट्रमंडल सम्मेलन विवादों में फंस गया है। श्रीलंका की कोशिश है कि इस बैठक के सहारे वह तमिल विरोधी देश के रूप में तीन दशकों से चली आ रही अपनी छवि बदले।
जैसे जैसे शुक्रवार का उद्घाटन समारोह नजदीक आ रहा है, दुनिया भर की नजर 27 साल के गृह युद्ध पर तेज होती जा रही है। इस बात का जिक्र यादा हो रहा है कि किस तरह श्रीलंका के जवानों और तमिल विद्रोहियों ने एक दूसरे के खिलाफ जुल्म और यादती की। तमिल विद्रोहियों के खिलाफ युद्ध 2009 में खत्म हुआ।
भारत और कैनेडा के अधिकारियों ने इस सम्मेलन के बहिष्कार का एलान किया है। दूसरे देशों को इस बात को न्यायोचित ठहराना है कि वे इस सम्मेलन में क्यों शामिल हो रहे हैं। राष्ट्रमंडल सदस्य देशों की मुखिया ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय इसमें शामिल नहीं होंगी और उनके बेटे प्रिंस चार्ल्स इसकी अध्यक्षता करेंगे। कैरिबियाई राजनयिक सर रोनाल्ड सैंडर्स का कहना है, “ये शर्म की बात है कि कॉमनवेल्थ यहां पहुंच गया।उनका कहना है कि श्रीलंका को चुने जाने का मतलब है कि “हम इस संस्था के मूल्यों को गंभीरता से नहींले रहे हैं।
न्याय की मांग
श्रीलंका बार बार इस बात से इनकार करता है कि उसकी सेना ने किसी तरह की यादती की है। वह स्वतंत्र जांच की मांसे बचता आया है। उल्टे बहिष्कार करने वाले देशों के बारे में श्रीलंका के विदेश मंत्री का कहना है, “न्याय के मामले में कोई स्थिति साफ नहीं है, कुछ देश दूसरे देशों के बारे में न्याय करना चाहते हैं।देश के नेता पत्रकारों पर भी भेदभाव का आरोप लगा रहे हैं।
देश में राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे का परिवार 2005 से सत्ता पर काबिज है। राष्ट्रपति के एक भाई आर्थिक मंत्री हैं, दूसरे रक्षा मंत्री और तीसरे संसद में स्पीकर का जिम्मा संभाल रहे हैं।
राष्ट्रपति महिन्दा राजपक्षे
ब्रिटेन के पूर्व उपनिवेशों वाले 53 सदस्यीय राष्ट्रमंडल में मानवाधिकार और लोकतंत्र प्रमुख मुद्दे हैं और सदस्य देश गृह युद्ध के मामले में स्वतंत्र जांच की मांकर रहे हैं। श्रीलंका इस सम्मेलन को एक मौका मान रहा है और वह चाहता है कि तमिल युद्ध और मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों को दरकिनार कर विकास की बात की जाए। श्रीलंका में इसकी तैयारियां जोर शोर से की गई हैं, नई सडक़ें बनाई गई हैं, बंदरगाहों को मजबूत किया गया है और मूर्तियों को चमकाया जा रहा है।
पूरी तैयारियां
मंगलवार को राष्ट्रपति राजपक्षे ने कहा, “हमें इस बात की खुशी है कि आप इस शांतिप्रिय देश में आए हैं। और इस बात की भी कि आप हमारी बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था में हिस्सा लेना चाहते हैं।देश में सरकार विरोधी प्रदर्शनों पर हल्का नियंत्रण किया जा रहा है। सोमवार को सरकार समर्थकों का प्रदर्शन भी हुआ। इसी दिन से राष्ट्रमंडल प्रतिनिधि देश में आने लगे। बुधवार के अलावा गुरुवार को भी विदेश मंत्रियों की बैठक होने वाली है, जबकि राष्ट्राध्यक्षों की तीन दिनों तक चलने वाली बैठक शुक्रवार को शुरू होगी।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने अगस्त में कहा कि सिंहली बहुमत वाली श्रीलंका की सेना ने करीब 40,000 अल्पसंख्यक तमिलों की हत्या की। इसमें यह भी कहा गया कि विद्रोहियों ने आम लोगों की हत्या की और जबरन बाल सैनिकों की भर्ती की। हालांकि श्रीलंका संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की कमिश्नर नवी पिल्लै की इस रिपोर्ट को लगातार खारिज करता आया है। उसका कहना है कि पिल्लै ने यह नहीं देखा है कि किस तरह देश के अंदर इस मामले की जांच की कोशिश की जा रही है।
भारत भी बाहर
भारत के पूर्व राजनयिक केसी सिंह का कहना है सरकार का रवैया “असल में उल्टी दिशा में चला गया है।सितंबर में प्रांतीय चुनाव के बाद श्रीलंका सरकार ने दावा किया कि तमिलों की भागीदारी बढ़ाई जा रही है, हालांकि जानकारों का मानना है कि जमीनी हकीकत इससे अलग है। कैनेडा के प्रधानमंत्री स्टीफेन हार्पर ने कहा है कि वे इस सम्मेलन से दूर रहेंगे क्योंकि वह ताजा रिपोर्ट से आहत हैं।
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टोनी एबॉट का कहना है कि वह इसमें शामिल होंगे, जबकि ऑस्ट्रेलियाई सीनेटर ली रायानन का आरोप है कि कोलंबो युद्ध अपराध के मामलों को ठंडे बस्ते में डालना चाहता है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन का कहना है कि श्रीलंका को “मुश्किल सवालों के जवाबदेने हैं। भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की कि क्यों उनका विदेश मंत्रालय इस सम्मेलन में देश की अगुवाई करेगा और वह खुद क्यों नहीं जाएंगे। भारत में तमिलों का एक बड़ा हिस्सा रहता है और अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले कोई भी नेता उनकी भावनाओं को आहत नहीं करना चाहेगा।
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