बैंकों के मुनाफे पर दबाव बने रहने का अंदेशा

मुंबई, चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (जुलाई-सिंतबर) में बैंकों के वित्तीय परिणाम उसी तरह निराशाजनक रहे हैं, जैसी संभावनाएं व्यक्त की जा रही थीं। सार्वजनिक बैंकों में एकाध को अगर छोड़ दें तो हालात सबके खराब रहे हैं। लेकिन चिंता की बात बैंकों के लिए यह है कि आगे भी ऐसे ही हालात रहेंगे।
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के चेयरमैन डी. सरकार कहते हैं कि यह समय बैंकों के लिए काफी कठिन है और जिस तरह का परिदृश्य दिख रहा है, ऐसे में यह कहना बड़ा मुश्किल है कि आगे किस तरह की स्थिति होगी, पर इससे बेहतर नहीं होगी। उनका मानना है कि अगर आगे चलकर उधारी की मांग आती है और जमा में कमी दिखती है तो एडवांस पर ब्याज दर बढ़ेगी, लेकिन यह भविष्य की बात है। सिंडिकेट बैंक के कार्यकारी निदेशक एम. के. जैन कहते हैं कि फिलहाल बैंकों का फोकस रिटेल और एसएमई पर है क्योंकि यहां से मांग आ रही है। जहां तक इन्फ्रा या लौह अयस्क या किसी अन्य सेक्टर की बात है तो जब सरकार की ओर से प्रोजेक्टों को जल्दी मंजूरी मिलेगी तो कर्ज की मांग बढ़ेगी। लेकिन अब यह चुनाव के बाद ही संभव है। इसलिए दूसरी छमाही में भी कोई बहुत यादा सुधार की उम्मीद नहीं दिख रही है।
भारतीय स्टेट बैंक की प्रमुख अरुंधति भट्टाचार्य कहती हैं कि परिसंपत्तियों की गुणवत्ता पर जिस तरह से दबाव बना हुआ है, उससे ऐसा नहीं लगता है कि सुधार का फिलहाल कोई संकेत है। आगे चलकर बैंकों को प्रदर्शन के मोर्चे पर और दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। इसी तरह एक अन्य बैंकर्स का मानना है कि अगली दोनों तिमाहियों में भी बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद नहीं है। हालांकि दिसंबर से यह पता चलेगा कि कैसी मांग आ रही है और किस सेक्टर से आ रही है, इसके बाद ही यह तय हो पाएगा।
गौरतलब है कि दूसरी तिमाही में देना बैंक, सेंट्रल बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, इंडियन ओवरसीज बैंक, भारतीय स्टेट बैंक जैसे प्रमुख सरकारी बैंकों के परिणाम काफी खराब रहे हैं। हालांकि इसकी तुलना में निजी बैंकों का प्रदर्शन काफी बेहतर रहा है। उपर्युक्त बैंकों के शुद्ध मुनाफे पर एनपीए (फंसे कर्ज) की भी काफी मार पड़ी है। इसलिए बैंकों के लिए दूसरी छमाही में इस स्थिति से निपट पाना आसान नहीं लग रहा है।

 

 

You might also like

Comments are closed.