सिख दंगों की आँखों-देखी पर हीलियम
टोरंटो,1984 में भारत की तत्तालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की उनके ही दो सिख बॉडीगार्डों ने हत्या कर दी थी। इसके बाद दिल्ली में सिख विरोधी दंगे हुए। जिसमें सैकड़ों निर्दोष सिखों ने अपनी जान गंवा दी थी।
लेखक जसप्रीत सिंह ने अपनी किताब हीलियम में इस हिंसा को एक अलग नज़रिए से पेश करने की कोशिश की है। जसप्रीत सिंह 1984 में हिंसा के वक्त दिल्ली में रह रहे थे और अपनी किताब में उन्होंने युवा किरदार राज के माध्यम से हिंसा की तस्वीर को शब्दों में लोगों के सामने लिखा है।
जसप्रीत सिंह 1990 में कैनेडा चले गए चहाँ उन्होंने 1998 में मैकगिल विश्वविद्यालय से केमिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की। 2004 में उनकी पहली किताब सेवेन्टीन टोमेटोज़ ने बहुत से अवार्ड भी जीते।
1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के मामले आज भी अदालतों में लंबित हैं। जैसे ही पुलिस चली गई भीड़ दोबारा वहाँ आ गई, उन्होंने मेरे भाई को बाहर घसीट लिया, और राष्ट्रगान गाने को कहा। देवी दुर्गा की तस्वीर के सामने ले जाकर उसके बाल और दाढ़ी काट डाली। कैरोसिन डाल कर उसे जि़ंदा जला दिया। मेरी बेटी की वजह से मैं बच गई। उसने लडक़ों की तरह कपड़े पहन रखे थे। वो पड़ोसियों के पास गई इसके बाद 3-4 महिलाओं को लेकर आ गई। उन्होंने एक चेन बनाकर मुझे घेर लिया। भीड़ ने मुझसे मेरे बेटे को देने को कहा। मेरी बेटी चिल्ला रही थी कि मेरी माँ को छोड़ दो। उन्होंने उसे खींच लिया और सफ़ेद पाउडर डालकर जला डाला जैसे कि वे होली खेल रहे थे। उसने उस भीड़ को नहीं बताया कि वो एक लडक़ी थी। अपनी बेटी को मारने में मैंने भीड़ की सहायता खुद कर दी थी।
हीलियम के लेखक जसप्रीत सिंह कहते हैं, ये कहानी दिल्ली में 1984 में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद हुई हिंसा की शिकार एक महिला की है। अपनी किताब में हिंसा के समय के अनुभवों को लेखक जसप्रीत सिंह ने बीबीसी आउटलुक के साथ साझा किया। पेश है जसप्रीत की कहानी, उनकी जुबानी।
1984 में हिंसा के समय आप दिल्ली में रह रहे थे। लेकिन हिंसा के शुरु होने से पहले आपका जीवन कैसा था? दिल्ली में हुई इस हिंसा के वक्त मैं एक टीनएजर था। हम 1983 में ही कश्मीर से दिल्ली आए थे। उसके बाद ये दंगे हुए।
उन परेशानी भरे दिनों की यादें आज भी मेरे दिल और दिमाग़ में ताज़ा है। जब आपको इंदिरा गांधी की हत्या के बारे में पता चला। तो एक किशोर होने के नाते उस वक्त आपकी त्वरित प्रतिक्रिया क्या थी? मुझे याद है उस वक्त मैं स्कूल में अपनी जीवविज्ञान की प्रयोगशाला में था। हमारी अध्यापक ने हमसे जल्दी घर जाने को कहा।
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