क्यों पाठ-पूजा में जरूर बजाना चाहिए शंख?

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उज्जैन। हिन्दू धर्म में पूजा परंपराओं के अलावा कई खास मौकों पर शंख नाद यानी शंख बजाना मंगलकारी माना गया है। इन अवसरों पर शंख से पैदा ध्वनि के बड़े ही शुभ प्रभाव होते हैं। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक शंख नाद यानी शंख बजाने का फल शत्रुओं को भी मात देने वाला व लक्ष्मी को प्रसन्न करता है। खासतौर पर धर्मग्रंथों में दक्षिणावर्ती शंख या मोती शंख बड़े ही मंगलकारी माने गए हैं। यहीं नहीं समुद्र मंथन से निकलने से शंख, महालक्ष्मी के भाई माने जाकर दु:ख-दरिद्रता दूर करने वाले भी बताए गए हैं।
हिन्दू धर्मग्रंथ श्रीमद्भगवदगीता के मुताबिक महाभारत युद्ध की शुरुआत भगवान कृष्ण सहित कई योद्धाओं ने दिव्य शंख बजाकर की थी। इनमें भगवाने कृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख, युधिष्ठिर ने अनंत-विजय, भीम ने पौंड्रक, अर्जुन ने देवदत्त, नकुल ने सुघोष व सहदेव ने मणिपुष्पक नामक शंख बजाए थे और वे युद्ध में विजयी हुए, जिसके पीछे धर्मयुद्ध में शत्रु पर विजय पाने के लिए शंखनाद के जरिए वातावरण में मंगलकारी ईश्वरीय शक्तियों व ऊर्जा को फैलाना भी एक वजह थी।
धार्मिक ही नहीं योग, साधना व विज्ञान के नजरिए से भी शंख बजाना सेहत के लिए फायदेमंद है। इनके मुताबिक पूजा पाठ व आरती के दौरान शंख बजाने से फेफड़े मजबूत होते हैं। क्योंकि शंख फूंकने के लिए शुद्ध वायु फेफड़ों तक पहुंचती है और अशुद्ध हवा बाहर निकल जाती है। यही नहीं, इससे आंतों के विकार या बीमारियां भी दूर हो जाती हैं। इनसे मन हमेशा एकाग्र व शांत, तो शरीर निरोगी व ताकतवर बना रहता है।
शंख की ध्वनि बजाने वाले को ही नहीं सुनने वाले को भी लाभ पहुंचाती है। क्योंकि माना जाता है कि इसकी आवाज से तामसी व बुरे विचार दूर होते हैं। इनके अलावा शंखनाद पापनाशक, रोगनाशक होकर भरपूर लक्ष्मी कृपा बरसाने वाला वाला माना गया है।

 

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