लालू और नीतीश ने एक दूसरे को ललकारा, मंच बना अखाड़ा
पटना : एक-दूसरे के कट्टर विरोधी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू यादव वर्षों बाद शनिवार को एक साथ दिखाई पड़े. सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि दोनों ने एक-दूसरे पर चुटकी भी ली.
जब से नीतीश कुमार ने लालू का साथ छोड़ा है, दोनों एक साथ मंच साझा करने से बचते रहे हैं. लेकिन इस कार्यक्रम के उद्घाटन के वक्त दीप प्रज्ज्वलित करते वक्त दोनों बिलकुल आसपास खड़े थे. दोनों नेता का कद न सिर्फ बिहार की राजनीति में बल्कि देश की राजनीति में भी काफी बड़ा है. डॉ राममनोहर लोहिया को अपना आदर्श बताने वाले नीतीश कुमार और लालू यादव आज अलग-अलग राह पर खड़े हैं और अपनी-अपनी राजनीति कर रहे हैं.
केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे की उपस्थिति में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के बीच लंबे समय के बाद शनिवार को जुबानी जंग हुई. एक कार्यक्रम में नीतीश और लालू के बीच में शिंदे बैठे हुए थे और इस अवसर पर नीतीश ने कहा कि मीडिया का विकास और विस्तार होने के साथ इन दिनों सोशल मीडिया का प्रभाव इतना बढा है कि अब पुराने लोग भी ट्विट करने लगे हैं.
नीतीश ने कहा कि ट्विट का मतलब चिडिया की चहचाहट है और शब्दकोष में इसका अर्थ ‘चीचीं’ लिखा है. उन्होंने कहा कि नए लोग (युवा) चेचियाते हैं तो अच्छा लगता है पर आजकल पुराने लोग (लालू) भी देखा-देखी ऐसा करने लगे हैं. उन्होंने लालू पर निशाना साधते हुए कहा कि अखबार में केवल वह ही छपे उनकी इस लालच तो समझते हैं और अगर कोई दूसरे के बारे में कुछ भी छपने पर उनका हाजमा बिगड जाता है.
नीतीश ने लालू के बारे में कहा कि जब ताकत (सत्ता में रहने पर) हो तो वे तय करें कि अखबार में कौन सी तस्वीर और खबर कहां छपेगी या नहीं. उन्होंने कहा कि हम ऐसा बिहार बनायेंगे जिसमें बिहारी कहलाना मान और सम्मान का विषय होगा. बिहार अपनी गौरवमयी अतीत को प्राप्त करने में लगा हुआ है.
नीतीश ने अखबार में बिहार की विरासत और यहां छुपे पुरातत्व स्थलों के बारे में लिखे जाने का सुझाव देते हुए उसे भी स्थान देकर उन्हें उभारे जाने की आवश्यकता जतायी. उन्होंने बिहार में हो रहे सामाजिक परिवर्तन महिलाओं की जागृति और हाशिये पर के लोगों के आगे आने को अखबारों में स्थान दिए जाने का सुझाव देते हुए कहा कि उनकी तस्वीर नहीं छापने के साथ सरकार की जितनी भी आलोचना हो सकती है, की जाए.
नीतीश के यह कहने पर कि उन्हें जहां पहुंचना था पहुंच चुके हैं और जो करना था कर चुके हैं लालू द्वारा टोके जाने पर उन्होंने कहा कि यह लालू जी कह रहे हैं कि अगर हमको दिखाना है और उनके बारे में लिखना बंद कर देंगे तो अखबार को बंद कर दें लेकिन वे ऐसा दावा नहीं करते हैं. उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि शायद लालू जी यह समझ रहे हैं कि हम है तो वह भी हैं.
इससे पूर्व लालू ने प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष मार्केडय काटजु द्वारा बिहार में पत्रकारों की स्वतंत्रता को लेकर नीतीश सरकार पर की गयी टिप्पणी का जिक्र करते हुए कहा कि यहां क्षमतावान पत्रकारों के होने के बावजूद विगत दिनों में उनकी पत्रकारिता में गिरावट आयी है और उनकी स्थिति भाग्य बताने वाले ज्योतिषि के तोते जैसे हो गयी है.
लालू ने कहा कि उनके और उनकी पत्नी राबडी देवी के कार्यकाल के दौरान उनकी जितनी आलोचनाएं हुई हैं पर उस दौरान किसी भी अखबार या पत्रकार पर खतरा भी आया है तो वे सबसे आगे खडे रहे हैं.उन्होंने नीतीश पर निशाना साधते हुए कहा कि कुछ लोग इतिहास बनाने में लगे हुए हैं और इसके लिए आतुर और बेचैन रहते हैं कि अखबारों में कैसे उनका नाम छपता रहे.
लालू ने कहा कि अगर कोई अखबार अपने खर्च की भरपायी और अन्य आवश्यक्ता की पूर्ति के लिए केवल व्यवसाय के दृष्टिकोण से सरकारी विज्ञापन पाने के लिए उसके पक्ष में खबरे छापता है तो वह जनमानस के लिए हितकारी नहीं है तथा वह अखबार टिकता नहीं.
उन्होंने सरकार और राजनेताओं के सकारात्मक आलोचना की वकालत करते हुए कहा कि चाहे वे हों जिनके पास अभी कोई काम नहीं (सत्ता में नहीं होने से) या फिर नीतीश जी हों सरकार की कुछ प्रशंसा हो पर उसके खिलाफ सही बात को छापा जाना चाहिए. लालू ने कहा कि बिहार आगे बढे इसमें कोई मतभेद नहीं है पर यहां बिहार में काम क्या होता है कि लालू को कैसे रोकना है ऐसे में बिहार कैसे बढेगा.
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