राहुल को पीएम कैंडिडेट घोषित करने में क्‍यों हिचकी कांग्रेस?

1017219_10151919048321936_1547547303_nनई दिल्‍ली. कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी ने राहुल गांधी को पीएम कैंडिडेट घोषित करने का प्रस्‍ताव खारिज कर दिया है। उन्‍होंने गुरुवार को हुई कांग्रेस की वर्किंग कमेटी की बैठक में कहा- हमारी पार्टी में प्रधानमंत्री पद का उम्‍मीदवार घोषित करने की परंपरा नहीं है। गौरतलब है कि चार राज्‍यों के विधानसभा चुनावों में हार के बाद खुद सोनिया गांधी ने उचित समय पर पीएम कैंडिडेट के नाम का एलान करने की बात कही थी। इसके बाद 3 जनवरी को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राहुल के लिए रास्‍ता साफ करते हुए खुद को तीसरी बार पीएम पद की रेस से अलग करने की घोषणा की थी, लेकिन गुरुवार को जब कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक हुई तो पार्टी ने कुछ और ही फैसला ले लिया।
राहुल को पीएम कैंडिडेट घोषित नहीं करने के कांग्रेस के निर्णय पर भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने चुटकी लेते हुए कहा कि राहुल गांधी को बचाने के लिए कांग्रेस ने यह फैसला किया है। वह जानती है कि 2014 लोकसभा चुनाव में उसे हार का सामना करना पड़ेगा। राजनीतिक विश्‍लेषक भी कांग्रेस के इस फैसले को ‘पुरानी’ परंपरा के नाम पर ‘सेफ गेम’ बता रहे हैं। आखिर क्‍यों कांग्रेस राहुल गांधी को पीएम कैंडिडेट घोषित नहीं कर रही है? जानिए ऐसे पांच कारण, जिनकी वजह से कांग्रेस ने राहुल को नहीं घोषित किया पीएम कैंडिडेट।
1. वंश परंपरा की तरफदारी के आरोप से बचना
हाल ही में ‘आप’ नेता कुमार विश्‍वास अमेठी में रैली कर कांग्रेस पर चुनाव लड़ने की वंशवाद और भाई-भतीजावाद परंपरा का आरोप लगाया था। अमेठी से हमेशा नेहरु-गांधी परिवार का सदस्‍य या उनसे जुड़ा करीबी ही चुनाव लड़ता रहा है। यहां से संजय गांधी, राजीव गांधी, राजीव गांधी के करीबी रहे सतीश शर्मा, सोनिया गांधी और फिर राहुल गांधी चुनाव जीतते रहे हैं। वहीं प्रियंका गांधी के भी चुनाव लड़ने की अटकलें तेज हैं। हालांकि इस बारे में कांग्रेस की ओर से कोई बयान नहीं आया है। कांग्रेस का सिर्फ इतना कहना है कि वे लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी की रणनीति बनाएंगी और पार्टी को बाहर से सपोर्ट करेंगे। कांग्रेस नेताओं के मुताबिक प्रियंका कोई पद नहीं लेंगी। ऐसे में कांग्रेस को डर है कि यदि वह राहुल गांधी को पीएम उम्‍मीदवार घोषित करती, तो इससे विपक्षी पार्टियों द्वारा वंशवाद का विरोध करने का मुद्दा और गरमा जाता।
2. चुनावी मुद्दों का न होना
भाजपा ने नरेंद्र मोदी को अपना पीएम उम्‍मीदवार घोषित कर लोगों के सामने विकास का मुद्दा रख दिया है। वहीं ‘आप’ भ्रष्‍टाचार के मुद्दे पर चुनावी मैदान में उतर रही है। ऐसे में कांग्रेस के पास ऐसा कोई मुद्दा नहीं है, जिसके बल पर वह चुनाव में राहुल गांधी को प्रस्‍तुत कर सके। कांग्रेस अगर विकास को मुद्दा बनाती है, तो वह खुद विकास को लेकर विपक्षी पार्टियों के निशाने पर है और अगर कांग्रेस भ्रष्‍टाचार को मुद्दा बनाती है, तो यह बात सबके सामने है कि कांग्रेस के कार्यकाल में कोयला घोटाला, सीडब्‍ल्‍यूजी घोटाला, आदर्श सोसायटी घोटाला आदि जैसे कई बड़े घोटाले हुए हैं, जिसमें कई मंत्री भ्रष्‍टाचार में लिप्‍त पाए गए हैं। वहीं कई ऐसे भी मंत्री रहे, जिन्‍हें जेल की हवा तक खानी पड़ी। अपने दोनों कार्यकाल में यूपीए सरकार हमेशा घोटालों और भ्रष्‍टाचार को लेकर विवादों में रही।
3. सरकार की फजीहत कराना 
राहुल गांधी पार्टी में बेशक नंबर दो की स्थिति रखते हों और सांसद हों, लेकिन उनकी सरकार में बिल्‍कुल भी भागीदारी नहीं रही है। इस तरह उन्‍हें सरकार चलाने और उसमें शामिल होने का बिल्‍कुल भी अनुभव नहीं है। हां, इतना जरूर है कि कुछ मुद्दों पर वे सरकार की फजीहत करते नजर आए हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण उस समय देखने को मिला जब उन्‍होंने दागियों को बचाने वाले अध्‍यादेश की कॉपी फाड़कर फेंक दी थी, जबकि उस अध्‍यादेश को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई थी। राहुल के इस रुख से सरकार को वह अध्‍यादेश वापस लेना पड़ा था। ऐसे में कांग्रेस राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल कर कोई जोखिम नहीं ले सकती। वहीं कांग्रेस को भी लगता है कि राहुल के सरकार चलाने के मुद्दे मोदी के विकास के मॉडल को पीछे नहीं छोड़ सकते।
4. पार्टी नेताओं में एकता की कमी 
यह भी माना जा रहा है कि राहुल अपनी पार्टी से ऐसे नेताओं को बाहर करने का कदम उठा सकते हैं, जिनकी वजह से पार्टी की बदनामी हुई है। कुछ समय पहले राहुल ने पार्टी से दागी नेताओं को बाहर करने की बात कही थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की थी। अब यदि राहुल ऐसा करते हैं, तो इससे पार्टी में एकता की कमी का संदेश जाएगा। वहीं दूसरी ओर यह भी खबरें आती रही हैं कि वे कई राज्‍यों में विभिन्‍न मुद्दों पर पार्टी के नेताओं से अपनी अलग राय रखते हैं। चुनाव अभियान के दौरान उन्‍हें कई बार पार्टी के वरिष्‍ठ नेताओं से अलग बैठे देखा गया है। ऐसे में कांग्रेस को पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि पार्टी के सभी नेता एक हैं और वे राहुल से अलग नहीं हैं।
5. भीड़ को वोट में बदलने का प्रभाव न होना
राहुल गांधी की पार्टी में भूमिका और उनके नेतृत्‍व को लेकर भी संशय बना हुआ है। कांग्रेस अभी इस बात को लेकर निश्चिंत नहीं है कि कांग्रेस के नेतृत्‍व में पार्टी कुछ बेहतर कर पाएगी। पिछले साल जिस प्रकार से राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार किया था, तब वे उम्‍मीद के मुताबिक भीड़ नहीं जुटा पाए थे और जो भीड़ आई उसे वे पूरी तरह वोट बैंक में नहीं बदल पाए। राहुल का चुनावी अभियान न तो भाजपा का कुछ बिगाड़ पाया और न ही भाजपा के वोट बैंक का। दिल्‍ली में भी एक चुनावी सभा के दौरान वहां आए लोग भी बीच से उठकर जाने लगे थे। इस मामले में उस समय दिल्‍ली की मुख्‍यमंत्री शीला दीक्षित को लोगों से राहुल का भाषण सुनने का अनुरोध करना पड़ा था। इन चुनावों में कांग्रेस को करारी हार का मुंह देखना पड़ा था। ऐसे में पार्टी को फिर से संदेह है कि क्‍या राहुल लोकसभा चुनाव में जुटाई भीड़ को वोट में बदल पाएंगे या नहीं?
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