वादाखिलाफी, यू-टर्न, बगावत…30 दिन में नाम कमाने से ज्यादा बदनाम हुई केजरीवाल सरकार
नई दिल्ली. अरविंद केजरीवाल सरकार का एक महीना पूरा हो गया है। उन्होंने 28 दिसंबर 2013 को दिल्ली के 7वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। केजरीवाल ने सीएम बनने के 48 घंटे के भीतर ताबड़तोड़ फैसले लेते हुए 666 लीटर मुफ्त पानी और बिजली की दरों में 50 फीसदी कमी करने का एलान कर विपक्षियों के होश उड़ा दिए थे। दिल्ली विधानसभा में केजरीवाल सरकार के बहुमत हासिल करने तक दिल्ली की जनता की उम्मीदें आसमान छू चुकी थीं। इसके बाद तो मीडिया ने केजरीवाल की लोकप्रियता को नरेंद्र मोदी के मिशन पीएम के लिए खतरे की घंटी तक बता डाला था, लेकिन केजरीवाल जल्द ही मुसीबतों से घिर गए।
केजरीवाल का 10 कमरों का डुप्लेक्स और ‘आप’ विधायकों का गाड़ी लेना विवादों में घिर गया। फिर जनता दरबार में अफरातफरी, जनलोकपाल का लटकना, कानून मंत्री सोमनाथ भारती के साथ जुड़े एक के बाद एक विवादों ने पार्टी को उभरने का मौका ही नहीं दिया। इसके बाद रही-सही कसर केजरीवाल के धरने ने पूरी कर दी, जिसकी कड़ी आलोचना हुई।
विवादों के साथ-साथ केजरीवाल जनता की उम्मीदों को लेकर भी घिरे हुए हैं। जनता आंदोलित हो चुकी है और केजरीवाल के ही तरीके अपना कर अपनी मांगें पूरी करवाने के लिए संघर्ष कर रही है। दिल्ली में अस्थाई शिक्षक पक्की नौकरी के लिए धरने पर बैठे हैं तो अस्थाई तौर पर डीटीसी में कार्यरत कर्मचारी भी अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठ गए हैं। कानून मंत्री सोमनाथ भारती के इस्तीफे की मांग को लेकर भाजपा नेता भी सोमवार को धरने पर बैठे।
केजरीवाल सरकार का एक महीना किसी फिल्मी कहानी के जैसा रहा, जिसमें एक्शन से लेकर ड्रामा तक सबकुछ शामिल रहा।
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