जाट समुदाय को मिला ओबीसी आरक्षण, केन्द्र ने दी मंजूरी
नई दिल्ली, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट ने जाट आरक्षण बिल, एससीएसटी अत्याचार विरोधी बिल और आंध्र प्रदेश विभाजन बिल में प्रस्तावित संशोधन पर अपनी सहमति की मुहर लगा दी। वहीं, कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ओर से बढ़ाए गए भ्रष्टाचार विरोधी अध्यादेशों को कैबिनेट ने इन्हें नामंजूर कर दिया। बताया जाता है कि अध्यादेशों को लेकर राजनीतिक दलों के कड़े रुख के बाद राष्ट्रपति की ओर से मिले संकेतों ने भी सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पर मजबूर किया।
चुनाव से ठीक पहले महत्वपूर्ण अजेंडे को संसद से पास न होता देख कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अध्यादेश के जरिए पिछले दरवाजे से लागू कराने की योजना बनाई थी, जिसकी उन्होंने खुली वकालत भी की। लेकिन चुनावी माइलेज की बात सामने आते बीजेपी ने खुलेआम इसे चुनौती देने की बात कही।
सीपीएम ने बाकायदा राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को लेटर लिख इसे मंजूरी न देने की अपील की। सरकार में शामिल एनसीपी ने शुक्रवार को हुई कैबिनेट मीटिंग में चुनाव के ऐन पहले अध्यादेश लाने पर औचित्य का सवाल खड़ा किया था। इस माहौल में सरकार ने अध्यादेश पर राष्ट्रपति से राय मांगी थी। शनिवार को केंद्रीय मंत्री सुशील कुमार शिंदे व कपिल सिब्बल राष्ट्रपति से मिले।
बताते हैं कि राष्ट्रपति ने सरकार को संकेत दिया था कि चूंकि जल्दी ही आप चुनाव में जा रहे हैं, इसलिए इस वक्त अध्यादेश लाना ठीक नहीं होगा। सरकार को कहीं न कहीं यह भी लग रहा था कि आगे बढ़ने पर राष्ट्रपति इसे नामंजूर भी कर सकते हैं। वहीं कैबिनेट शुरू होने से ठीक पहले पार्टी के नेता ए.के. एंटनी, सुशील कुमार शिंदे और अहमद पटेल ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात की। अध्यादेश को लेकर दोनों ही बैठकें अहम बताई जा रही हैं।
जाटों के लिए आरक्षण मंजूर: सरकार ने ओबीसी कैटिगरी के तहत केंद्रीय नौकरियों व शैक्षणिक संस्थानों में जाटों को आरक्षण देने के प्रस्ताव पर अपनी हरी झंडी दे दी। देश के नौ राज्यों गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से मांग आई थी कि केंद्र सरकार अपनी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में ओबीसी श्रेणी जाटों को आरक्षण दे।
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