दिल्ली में राष्ट्रपति शासन पर रुख स्पष्ट करे बीजेपी, कांग्रेस : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली विधानसभा को निलंबित स्थिति में रखने की राष्ट्रपति की व्यवस्था पर बीजेपी, कांग्रेस को उनका रुख जानने के लिए शुक्रवार को नोटिस जारी किया। उच्चतम न्यायालय ने पूछा कि क्या दिल्ली विधानसभा को निलंबित स्थिति में रखने का एक कारण बहुमत जुटाने के लिए जोड़तोड़ की अटकलबाजी हो सकती है।
शीर्ष कोर्ट ने कहा कि जो चीज चिंतित कर रही है, वह यह है कि विधानसभा को एक साल तक निलंबित रखना लोकतंत्र के लिए खतरनाक हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि विधानसभा को एक साल के लिए निलंबित रखना चिंता की बात है, इससे लोकतंत्र को नुकसान पहुंच सकता है। कोर्ट ने राष्ट्रपति शासन लगाने के पक्ष में उपराज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को भेजी गई रिपोर्ट को आम आदमी पार्टी के साथ साझा करने की अनुमति दी।
दिल्ली विधान सभा को एक साल तक निलंबित रखने और राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने के खिलाफ आम आदमी पार्टी की याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को अपना रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने शुरू में इन दोनों राजनीतिक दलों को सुनवाई से अलग रखा था लेकिन आज उसने इस मसले पर दोनों दलों को अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया। न्यायालय ने पाया कि मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के इस्तीफा देने के बाद सरकार बनाने के सवाल पर भाजपा और कांग्रेस ने अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की थी।
न्यायमूर्ति आरएम लोढा और न्यायमूर्ति एनवी रमण की पीठ ने कहा कि हम भाजपा और कांग्रेस को इस मामले में तथ्यों के बारे में उनकी स्थिति जानने के लिये नोटिस जारी कर रहे हैं। न्यायाधीशों ने कहा कि यदि उनकी स्थिति साफ हो जायेगी तो उसे विधान सभा को निलंबित रखने के पीछे दल बदल के सहारे बहुमत हासिल करने की अटकल के सवाल पर गौर करने की जरूरत नहीं है। न्यायालय ने दोनों राजनीतिक दलों से तीन सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। इस मामले में अब एक अप्रैल को आगे सुनवाई होगी।
न्यायालय आप पार्टी और केन्द्र सरकार की दलीलों पर गौर करने के बाद यह जानना चाहता था कि संविधान की दसवीं अनुसूची लागू होने के बाद क्या विधान सभा को निलंबित रखने के लिये दल बदल की संभावना उचित आधार होता है। न्यायालय यह समझने का प्रयास कर रहा था कि राष्ट्रपति का आदेश यह कैसे कह सकता है कि विधान सभा को एक साल के लिये निलंबित रखा जाए।
गौर हो कि सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में विधानसभा को भंग नहीं करने के फैसले को सही ठहराया था। केंद्र सरकार ने कहा था कि फैसला जनहित में लिया गया था। बीजेपी सरकार बनाने का दावा पेश कर सकती है, इसको ध्यान में रखकर विधानसभा को भंग नहीं करने का फैसला लिया गया। जिक्र योग्य है कि अरविंद केजरीवाल के मुख्ख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद केंद्र सरकार ने दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते वक्त केजरीवाल ने विधानसभा को भंग कर नए सिरे से चुनाव कराने की सिफारिश की थी लेकिन केंद्र सरकार ने इसे नहीं माना। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाने और विधानसभा को भंग नहीं करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इस पर कोर्ट ने 24 फरवरी को केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया था।
Comments are closed.