‘मोदी की सुनामी’ में पूरी तरह उखड़ गए ‘हाथी’ के पांव
लखनऊ, ‘मोदी की सुनामी’ में ‘हाथी’ के पांव पूरी तरह उखड़ गए। सोलहवीं लोकसभा में बहुजन समाज पार्टी की नुमाइंदगी को एक भी सांसद मौजूद नहीं रहेगा। मोदी लहर ने पार्टी के सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले को तहस-नहस कर दिया है। इसके अलावा दलित वोटों की दीवार भी दरक गई है।
पंद्रहवीं लोकसभा में उत्तर प्रदेश से बसपा के बीस सांसद थे लेकिन सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में पार्टी के हाथ जहां पूरी तरह से खाली रह गए हैं वहीं उसके वोट बैंक को भी बड़ा झटका भाजपा ने दिया है। पिछले लोकसभा चुनाव में 27.42 फीसदी वोट झटकने वाली बसपा का वोट बैंक घटकर अब 20 फीसदी के ही आसपास रह गया है। साफ है कि वोट बैंक के लिहाज से पार्टी 18 वर्ष पहले की स्थिति से भी पीछे चली गई है। वर्ष 1996 में पार्टी को 20.61 फीसद वोट हासिल हुए थे जो कि वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव तक बढ़ता ही रहा।
वैसे तो सवा दो वर्ष पहले सूबे की सत्ता गंवाने के साथ ही पार्टी की ताकत लगातार घटती रही। सूबे की सत्ता गंवाने के बाद दूसरे राज्यों के चुनाव में भी ‘हाथी’ पहले की तरह चिंघाड़ नहीं सका था। जिस ‘सोशल इंजीनियरिंग’ के जादुई फार्मूले से बसपा वर्ष 2007 में अकेले दम पर उत्तर प्रदेश कब्जाने में कामयाब रही थी। उसी फार्मूले ने वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में उसे सफलता दिलाई थी लेकिन इस बार वह फार्मूला मोदी लहर के आगे बिल्कुल नहीं चला। अबकी सिर्फ आरक्षित सीट पर अनुसूचित जाति के प्रत्याशी उतारने के अलावा पार्टी ने रिकार्ड 21 ब्राह्मण व 19 मुस्लिम समाज के प्रत्याशियों पर दांव लगाया था लेकिन कोई भी दांव काम न आया। 1984 में सूबे की राजनीति में धीरे से कदम रखने वाले 21 फीसद दलित आबादी वाले उत्तर प्रदेश में ‘हाथी’ के लिए निश्चित ही यह रणनीति की मीमांसा का समय है।
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