घर में ही थम गए साइकिल के पहिये

17_05_2014-17mulayamsinghलखनऊ,  उम्मीद थी कि जिस साइकिल को उत्तर प्रदेश की अवाम ने दो वर्ष पहले ही प्रचंड बहुमत से राज्य की सत्ता पर सवार किया था, उसी के पहिये लोकसभा चुनाव में घर के अन्दर ही थम गए। पिछड़े मतों के बिखराव व सवर्णों की बेरूखी ने समाजवादी पार्टी को खुद की अंकतालिका में सबसे निचले पायदान पर ला दिया। पार्टी की ताकत भी अब सवालों के सलीब पर रहेगी। राज्य में सरकार की कार्यप्रणाली को भी अब नयी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

उत्तर प्रदेश में वर्ष 1992 में गठन के बाद समाजवादी पार्टी पहली बार 1996 में लोकसभा के चुनावी मैदान में कूदी, तब उसके खाते में 13 सीटें आयीं, दो दर्जन से सीटों पर वह दूसरे नम्बर रही। वक्त के साथ समाजवादी पार्टी का जनाधार तेजी से बढ़ा। 1998 के चुनाव में सपा खाते में 20 सीटें आयीं। 1999 में उसने 26 सीटें जीतीं। 2004 के चुनाव में 35 सीटें उसके हिस्से में आयी थी। उप चुनाव की सीटें भी उसने जीत ली थीं। जनाधार बढ़ाती जा रही समाजवादी पार्टी ने 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले जब भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से हाथ मिलाया। अपने फायर ब्राण्ड नेता आजम खां को भी लाल झण्डी दिखायी थी। तब भी उसे राज्य में 23 सीटें मिली थीं और राज्य में वह सबसे बड़ा दल था।

वर्ष 2012 में हुए राज्य विधानसभा के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने युवा चेहरे अखिलेश यादव को आगे कर चौसर बिछायी और आवाम ने प्रचंड बहुमत से साइकिल को सत्ता तक पहुंचा दिया। राज्य की सत्ता पर काबिज होने के बाद समाजवादी पार्टी की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आ गयी। बेशुमार दंगे, समाजवादी पार्टी के नेताओं की गुंडई, एक दूसरे को नीचे दिखाने की होड़ ने पार्टी के साथ राज्य सरकार को भी कठघरे में खड़ा कर दिया। हालांकि सरकार ने इस दौरान बेरोजगारी भत्ता, लैपटाप योजना, कन्या विद्या धन जैसी लोकलुभावन योजनाएं चलायीं। समाजवादी पेंशन योजना शुरू की। 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने का अभियान छेड़ा और लोकसभा चुनाव से काफी पहले अति पिछड़े वर्ग के नेताओं को कैबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री बनाकर उन्हें अति पिछड़ों सपा के पक्ष में गोलबंद करने का जिम्मा सौंपा, लेकिन वह इस मिशन में कामयाब नहीं हो सके। परिणाम से साफ है कि पिछड़े वर्ग का जनाधार हाथ से खिसकर भाजपा के पक्ष में खिसक गया। मुस्लिम जनाधार भी बिखरा-बिखरा रहा।

मुख्यमंत्री की पत्‍‌नी डिंपल यादव कन्नौज से महज 29 हजार वोटों से ही विजयश्री हासिल कर सकी हैं। सपा मुखिया मुलायम के भतीजे धर्मेन्द्र यादव, मुलायम खुद और दूसरे भतीजे अक्षय यादव फिरोजाबाद से जीत का परचम फहरा सके। सपा के लिए कुछ सियासी सुकून की बात है तो सिर्फ इतनी कि उसके 31 प्रत्याशी दूसरे नम्बर पर रहे हैं और राज्य में उसकी सबसे बड़ी प्रतिद्वंदी बहुजन समाज पार्टी का खाता तक नहीं खुल सका है। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि इस परिणाम से भविष्य की सियासी राह भी मुश्किल होगी। इसे रोकने के लिए समाजवादी पार्टी को सियासी प्रबंधन पर नए सिरे से विचार करना होगा।

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