रेल किराया बढ़ाने के पीछे आखिर क्या थी सरकार की मजबूरी

21_06_2014-sdanandgनई दिल्ली। बढ़ते खर्च और बेहतर सेवा की मांग की चुनौतियों को देखते हुए रेलवे ने यात्री और माल भाड़े में बढ़ोतरी का फैसला लिया। शुक्रवार को रेलवे के इस फैसले ने देश को चौंका कर रख दिया, लेकिन क्या इसके पीछे सरकार की मजबूरी थी?

इस संबंध में रेलवे का कहना है कि यात्री और माल भाड़े में बढ़ोतरी किए बगैर 164,995 करोड़ रुपये की आमदनी में से 10,000 करोड़ रुपये बचत करना संभव नहीं है।

गौरतलब है कि बजट से पहले उठाए गए कड़े कदम के तहत रेल मंत्रालय ने सभी श्रेणियों के यात्री किराये में 14.2 फीसद और माल भाड़ा दरों में 6.5 फीसदी की वृद्धि कर दी। इस वृद्धि से रेलवे को सालाना 8,000 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होगा। रेलवे ने इस फैसले के जरिये इससे पहले 16 मई को की गई घोषणा को अमल में लाने का काम किया है। तब लोकसभा चुनावों के नतीजे आने का दिन होने की वजह से किराया बढ़ाने की घोषणा होने के तुरंत बाद अमल रोक दिया गया।

राजग सरकार के सत्ता संभालने के एक महीने से भी कम समय के भीतर लिए गए इस फैसले पर रेलमंत्री सदानंद गौड़ा ने कहा कि मेरे पूर्ववर्ती मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा लिए गए इस फैसले को लागू करने के लिए मैं मजबूर हूं, मैं केवल इस आदेश को लागू करने पर लगी रोक को हटा रहा हूं। गौड़ा ने कहा कि पिछली सरकार ने जो अंतरिम बजट पेश किया था, उसमें कुछ राजस्व 16 मई को घोषित वृद्धि के आधार पर जुटाने का प्रस्ताव किया गया था।

यात्री वर्ग में हर महीने 900 करोड़ रुपये का नुकसान उठा रही रेलवे का कहना है, रेलवे के सालाना खर्च को पूरा करना तब तक संभव नहीं होगा, जब तक कि पिछली सरकार द्वारा किरायों के बारे में लिए गए फैसले को लागू नहीं किया जाता, इसलिए संशोधित यात्री किराया और माल भाड़ा दरों के क्रियान्वयन पर लगी रोक के आदेश को वापस ले लिया गया।

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