गीता पर जज दवे के बयान के खिलाफ हुए काटजू

नई दिल्ली। भारतीय प्रेस परिषद् के अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू ने सुप्रीम कोर्ट के जज ए.आर. दवे के स्कूल से ही गीता और महाभारत पढ़ाने वाले बयान का विरोध किया है। काटजू ने कहा है कि ऐसा करना देश के लिए बहुत ही नुकसानदेह है और ये भारत की धर्म-निरपेक्षता और संविधान के भी खिलाफ है।

सुप्रीम कोर्ट के जज ए.आर. दवे ने शनिवार को कहा था कि महाभारत और भगवद गीता से हम जीवन जीने का तरीका सीखते हैं। यदि वे भारत के तानाशाह होते तो बच्चों को पहली कक्षा से ही इन्हें लागू करते। उन्होंने कहा था कि भारतीयों को अपनी प्राचीन परंपरा और पुस्तकों की ओर लौटना चाहिए। महाभारत और भगवत गीता जैसे मूल ग्रंथों से बच्चों को कम उम्र में अवगत कराना चाहिए। जज दवे ने अहमदाबाद में ये बातें कही थी। उन्होंने कहा था कि मैं माफी चाहता हूं, अगर कुछ लोग अपने आप को धर्म-निरपेक्ष कहते हैं या कहे जाते हैं। लेकिन अगर कुछ अच्छा होता है तो हमें कहीं से भी उससे सीखना चाहिए।

उधर इस बात का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज काटजू ने कहा कि मैं उनके इस बयान से पूरी तरह असहमत हूं। उन्होंने कहा कि हमारे देश में विविधता है। यहां हर धर्म के लोग रहते हैं। ऐसे में इसे पढ़ने के लिए दूसरों को मजबूर करना हमारे देश की धर्म निरपेक्षता और संविधान के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि कोई भी मुस्लिम या ईसाई धर्म के लोग अपने बच्चों को ये किताब पढ़ाना नहीं चाहेंगे। इतना ही नहीं उनके बच्चों को ये पढ़ने पर मजबूर भी नहीं किया जा सकता।

काटजू ने कहा कि कुछ लोग मानते हैं कि गीता पढ़ने से इंसान के भीतर मनुष्यता आती है। वहीं मुसलमान कह सकते हैं कि सिर्फ कुरान से ही मुनष्यता का पाठ पढ़ा जा सकता है। ठीक उसी तरह ईसाई बाइबल, सीख गुरु ग्रंथ साहेब और पारसी जेंद अवेस्ता को मनुष्यता का पाठ सिखाने वाला कह सकते हैं। काटजू की राय में इस तरह की मजबूरी या अनिवार्यता देश की एकता के लिए गंभीर संकट पैदा कर सकती है।

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