बाढ़ से बदलने लगी कश्मीर की राजनीतिक दिशा
नई दिल्ली, चुनावी आहट से पहले ही बाढ़ की कहर से जूझ रहे जम्मू-कश्मीर में फिलहाल राजनीति भले दम साधे बैठी हो, राहत कार्य के बाद शुरू होने वाला पुनर्निर्माण प्रदेश राजनीति की दिशा बदल सकता है। संभावना जताई जा रही है कि घाटी विकास को नई आखों से देखे और राजनीतिक दल अपना एजेंडा बदलने को मजबूर हों। अलगाववाद की आग से परे कम से कम चुनावी एजेंडा जरूर विकास पर केंद्रित हो सकता है।
जम्मू-कश्मीर में जल प्रलय ने सबकुछ ध्वस्त कर दिया है। वहीं एक बात और स्पष्ट हो गई है कि अब तक के राज्य शासन में प्रशासन कहीं नहीं दिखा। ठोस विकास की सोच जमीन पर नहीं उतर पाई है। यही कारण है कि बचाव और राहत को लेकर भी सुस्ती तब तक खत्म नहीं हुई जब तक केंद्र ने पूरा काम अपने हाथ में नहीं लिया। नेशनल कांफ्रेंस की वर्तमान सरकार के खिलाफ यूं तो रोष पहले ही दिखने लगा था, बाढ़ की घटना में प्रदेश प्रशासन की लचर व्यवस्था ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी है। लेकिन इसके साथ ही यह सवाल भी उठने लगा है कि अब तक की सरकारों ने क्या किया? संभवत: राजनीतिक दलों से यह पूछा जा सकता है कि कश्मीर के लिए उनकी सोच क्या है। रेस में अब तक नेशनल कांफ्रेस से आगे दिख रही पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) को भी इसका जवाब देना होगा और मिशन 44 का एजेंडा तय कर आगे बढ़ रही भाजपा को भी।
लिहाजा तय माना जा रहा है कि कश्मीर के पुनर्निर्माण की योजना प्रदेश की राजनीति में भी बदलाव लाएगी। नरेंद्र मोदी सरकार ने बचाव और राहत के जरिये ही संकेत दे दिया है कि कश्मीर उनकी प्राथमिकता सूची में है। लोकसभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर में तीन सीटें जीतने के बाद भाजपा प्रदेश में पैठ बनाने की मुहिम में जुट गई है। हाल ही में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी मिशन 44 का नारा दे दिया है। यानी बहुमत की सरकार। राज्य की राजनीतिक जमीन भाजपा के लिए बहुत उर्वर नहीं रही है। लेकिन विकास का सपना जगाकर भाजपा जम्मू समेत घाटी में भी पांव मजबूत करने की कोशिश कर सकती है। ध्यान रहे कि भूकंप से ध्वस्त गुजरात के भुज में पुनर्निर्माण कार्य ने ही तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को और ऊंचाई दे दी थी। अब वह प्रधानमंत्री हैं और कश्मीर में राहत और बचाव की व्यक्तिगत तौर पर भी निगरानी कर रहे हैं। संभव है कि आने वाले दिनों में पर्यटन से लेकर आर्थिक विकास की की सोच सामने रख दी जाए। ऐसे में जनता की सोच भी बदलना तय है।
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