हरियाणा में कांग्रेस की उलझन दूर करेंगे सोनिया, शरद और लालू

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गुड़गांव, प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के चुनावी रथ को रोकने के लिए रस्साकशी में फंसी प्रदेश कांग्रेस की उलझन का समाधान सोनिया गांधी, शरद और लालू यादव मिलकर करेंगे। साथ ही तय करेंगे कि इनेलो के प्रति जदयू और राजद का रुख क्या होगा।

पूरी संभावना है कि कांग्रेस बिहार उपचुनाव के अपने सहयोगी जनता दल यू और राष्ट्रीय जनता दल के लिए कुछ सीटें छोड़ दे। मगर सीट कौन कौन सी हो, इसे लेकर कांग्रेस नेतृत्व कोई फैसला नहीं कर पाया। सीटों के बंटवारे के मुद्दे पर प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सहित प्रदेश कांग्रेस के नेताओं की जनता दल यू और राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं के साथ बातचीत हुई मगर बातचीत बेनतीजा रही। इसकी मुख्य वजह कांग्रेस के यह सहयोगी दल ऐसी सीट मांग रहे हैं जिन्हें कांग्रेस छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। बताया जाता है कि जदयू ने सोहना विधानसभा क्षेत्र पर अपना दावा जताया है लेकिन कांग्रेस इस सीट को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। उसका तर्क है कि इस सीट पर पिछली बार भी कांग्रेस ने ही जीत हासिल की थी और इस बार कांग्रेस ने यह सीट युवक कांग्रेस के लिए सुरक्षित कर दी है। इसी प्रकार राजद ने नांगल चौधरी पर अपना दावा ठोका है लेकिन उपरोक्त सीटें न मिलने की स्थिति में बादशाहपुर सहित मेवात व रेवाड़ी जिले की अन्य सीट के विकल्प भी सुझाए हैं, मगर प्रदेश स्तरीय नेताओं से बातचीत बेनतीजा रहने के बाद फैसला किया गया कि कौन-कौन सी सीट जदयू और राजद के लिए छोड़ी जाएं। इसका फैसला कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, जदयू अध्यक्ष शरद यादव और राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव करें। इतना ही नहीं कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व की आपत्ति इस बात को लेकर भी है कि एक ओर तो जदयू और राजद कांग्रेस से हरियाणा में विधानसभा सीट चाहते हैं लेकिन दूसरी ओर वे इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार करने की बात भी कर रहे हैं, जो संभव नहीं हैं। इस मामले में प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व दोनों सहयोगी दलों से स्थिति स्पष्ट करने के लिए कह रहा है।

उधर जदयू और राजद नेताओं का तर्क है कि इसमें कोई बुराई नहीं है। जब भाजपा को रोकने के लिए बिहार के दोनों धुर विरोधी दल एक मंच पर साथ आ सकते हैं तो हरियाणा में इनेलो को भी साथ लेने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव में शिकस्त खाने के बाद बिहार के दो धुर विरोधी जदयू और राजद एक मंच पर आकर कांग्रेस को अपने साथ लिया और राजनीति में ‘दुश्मनी’ छोड़ ‘दोस्ती’ का नया प्रयोग करते हुए बिहार विधानसभा के उपचुनाव में उम्मीदवार उतारे थे।

बिहार में यह प्रयोग काफी हद तक भाजपा को रोकने में सफल भी रहा। हरियाणा में बिहार एवं उत्तर प्रदेश के मतदाताओं की तादाद को देखते हुए अब इसी प्रयोग को हरियाणा विधानसभा चुनाव में दोहराने की कोशिश हो रही है। पूर्वाचल खासकर बिहार के मतदाताओं की तादाद भी हरियाणा में अच्छी खासी है। ऐसे में इन दलों के नेता यह मान रहे हैं कि अगर सभी को एक झंडे के नीचे ले आया गया तो हरियाणा में भाजपा को रोका जा सकता है।

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