जिताऊ फार्मूले की आस कांग्रेस कार्यकर्ता के पास

नई दिल्ली। लोकसभा चुनावों के बाद से हुए चार राज्यों के चुनावों में भी बदतर प्रदर्शन कर हाशिए पर खड़ी कांग्रेस को पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी एक बार फिर प्रयोगशाला की राह पर ले जा रहे हैं। राजनीतिक आइसीयू में पड़ी कांग्रेस को बचाने के लिए कांग्रेस नेता अब राहुल के निर्देश पर राजनीति की जमीनी पाठशाला में लौटेंगे। पार्टी उपाध्यक्ष के फरमान के तहत पार्टी के महासचिव और अनुसांगिक संगठनों के नेता देश-प्रदेश में कांग्रेस को दोबारा मजबूत करने का फार्मूला तलाशेंगे।

आम चुनावों में हार के बाद बनी एंटनी कमेटी की रिर्पोट ने अगर पार्टी के शीर्ष को हार के आरोप से बरी किया था, तो बुधवार को बारी कांग्रेस नेतृत्व की थी। हार पर पार्टी उपाध्यक्ष के छह महीने के चिंतन के बाद राहुल गांधी ने पार्टी के महासचिवों को बुला कर कार्यकर्ताओं के बीच जाने का फरमान सुनाया। उम्मीद की जा रही थी कि राहुल इस बैठक में कुछ कड़े निर्णय लेंगे। हालांकि, बैठक का एजेंडा तुम्हारी भी जय हमारी भी जय तक सीमित रहा। बैठक में शामिल एक महासचिव के मुताबिक ‘राहुल अभी भी पूरी तरह जिम्मेदारी से बच कर सामूहिक नेतृत्व की राह चलना चाह रहे हैं। यह निराशाजनक है।’ बैठक में राहुल ने पार्टी महासचिवों को प्रखंड एवं जिला स्तर के पार्टी कार्यकर्ताओं से मुलाकात करने और उनसे पार्टी के भविष्य के रोडमैप को लेकर बात करने को कहा है। इन सभी नेताओं को इस संबंध में दो महीने में एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए भी कहा गया है। बैठक में कांग्रेस पार्टी सभी महासचिवों ने हिस्सा लिया।

गौरतलब है कि राहुल लोकसभा चुनावों के बाद से ही विभिन्न राज्यों में आने वाले पार्टी के युवा एवं वरिष्ठ नेताओं से अलग-अलग समूहों में मुलाकात करते रहे हैं। बैठक के बाद कांग्रेस महासचिव व कम्युनिकेशन विभाग प्रमुख अजय माकन ने कहा कि कांग्रेस उपाध्यक्ष ने पार्टी महासचिवों से कहा कि वे प्रखंड एवं जिला स्तर के पार्टी कार्यकर्ताओं से मुलाकात करें और ताकत, विचारधारा और अन्य पहलुओं के मामले में पार्टी को कैसे आगे ले जाया जाए इस बारे में राय हासिल करें। माकन ने बताया कि पार्टी महासचिवों को रिपोर्ट तैयार करने के लिए दो महीने का समय दिया गया है। निश्चित समय में रिपोर्ट पार्टी को सौंपी जाएगी। फिर पार्टी विशेष सत्र बुलाकर इन पर चर्चा करेगी। सूत्रों के मुताबिक पार्टी में राहुल के कदम को लेकर एक राय नहीं है। एक धड़े का मानना है कि आम चुनाव में पांच साल की दूरी को देखते हुए पार्टी के पास बदलाव लाकर खड़े होने के लिए लंबा समय है।

ऐसे में पार्टी को तात्कालिक नफे-नुकसान की चिंता किए बगैर राज्यों में अपने संगठन पर पूरा ध्यान देना चाहिए। जबकि, दूसरे धड़े का मानना है कि लगातार चुनावी पराजयों के बीच हतोत्साहित कार्यकर्ताओं का मनोबल बनाए रखने के लिए पार्टी को नेतृत्व स्तर पर कुछ कड़े कदम उठाने होंगे।

अगले साल दिल्ली, बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में विधानसभा चुनावों को देखते हुए पार्टी को कुछ कड़े फैसले लेने चाहिए। गौरतलब है कि लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस की हार का सिलसिला जारी है।

साल 2009 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को 206 सीटें मिली थीं जो 2014 के आम चुनावों में घटकर 44 रह गईं। जबकि आम चुनावों के बाद चार राज्यों में के विधानसभा चुनावों में पार्टी महज 75 सीटें ही जीत सकी है।

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