पाकिस्तान में पांच आतंकियों की फांसी का रास्ता साफ
लाहौर। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में 2012 में सेना के शिविर पर हमले के दोषी पांच आतंकियों की फांसी की सजा पर लगी रोक लाहौर हाई कोर्ट की रावलपिंडी पीठ ने बुधवार को हटा ली। जज अरशद महमूद तबस्सुम ने सरकार की याचिका स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया।
उमर नदीम, अहसान नजीम, अमीर यूसुफ, आसिफ इदरीस और कामरान को लाहौर की कोट लखपत जेल में फांसी पर लटकाया जाएगा। इसी जेल में भारतीय कैदी सरबजीत ¨सह की साथी कैदियों ने हत्या की थी।
जेल अधीक्षक असद वारीच ने बताया कि डेथ वारंट जारी होने के बाद इनलोगों को आज या कल कभी भी फांसी दी जा सकती है। गौरतलब है कि पेशावर में स्कूल पर हमले के बाद पाकिस्तान सरकार ने आतंकियों को फांसी की सजा देने पर लगी रोक हटा ली थी। इसके बाद से अभी तक 6 आतंकियों को फांसी दी जा चुकी है।
दो पहुंचे सुप्रीम कोर्ट
इस बीच, फांसी की सजा पाए दो दोषियों ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सामूहिक दुष्कर्म के दोषी आबिद मसूद और सनाउल्लाह उर्फ बिल्लू ने अपनी याचिका में कहा है कि वे उम्रकैद काट रहे हैं और एक ही अपराध के लिए दो बार दंडित नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा कि आतंकरोधी अदालत द्वारा दी गई फांसी की सजा पर 17 साल तक तामील नहीं होने के लिए वे कसूरवार नहीं हैं। दोनों को 1997 में एक महिला के साथ दुष्कर्म का दोषी ठहराते हुए जून 1998 में मौत की सजा सुनाई गई थी। फैसले के खिलाफ 2006 में दोनों की अपील सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दी थी।
मौत की सजा बहाल करने के फैसले पर पाक की आलोचना
यूरोपीय संघ (ईयू) ने मौत की सजा बहाल करने के लिए पाकिस्तान की आलोचना की है। पाकिस्तान के लिए ईयू के राजदूत लार्स गुनर विगमार्क ने एक बयान में बुधवार को कहा,’हम मानते हैं कि आतंक के खिलाफ लड़ाई में मृत्युदंड प्रभावशाली नहीं है। पाकिस्तान को इसे बहाल करने के फैसले को रद कर देना चाहिए।’
दूसरी ओर, अमेरिका ने इसे पाकिस्तान का अंदरूनी मामला बताया है। अमेरिकी विदेश विभाग की उप प्रवक्ता मैरी हार्फ ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान सबसे ज्यादा प्रभावी देश है और फांसी की सजा पर पाबंदी हटाना उसका अंदरूनी मामला है।
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