जम्मू-कश्मीर में लगा राज्यपाल शासन

श्रीनगर, पीडीपी, भाजपा और नेकां के बीच गठजोड़ को लेकर सत्रह दिनों चली खींचतान और किसी भी दल द्वारा सरकार बनाने का दावा न किए जाने के बाद शुक्रवार को राज्य में एक बार फिर राज्यपाल शासन लागू हो गया और यह आठ जनवरी से प्रभावी होगा।
बीते सात सालों में यह दूसरा मौका है जब जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू किया गया है। इससे पूर्व 11 जुलाई 2008 को तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद द्वारा इस्तीफा दिए जाने के बाद राज्यपाल शासन लागू हुआ था। उस समय भी राज्यपाल के पद पर एनएन वोहरा ही थे।पिछले सप्ताह से ही कयास लगाया जाने लगा था कि अगर 19 जनवरी तक राज्य में सरकार का गठन नहीं हुआ तो जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू किया जा सकता है, लेकिन गत मंगलवार को कार्यवाहक मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने राज्यपाल से भेंट कर उन्हें खुद को कार्यमुक्त किए जाने का आग्रह किया था।
लोगों को उम्मीद नहीं थी कि उमर ऐसा करेंगे। उन्होंने राज्यपाल से कहा था कि 24 दिसंबर को उनके आग्रह पर ही उन्होंने सरकार के गठन तक कार्यवाहक मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी निभाना स्वीकार किया था। लेकिन मौजूदा हालात में बतौर कार्यवाहक मुख्यमंत्री रहते हुए लोगों की समस्याओं को हल करने में असमर्थ हैं। इसलिए उन्हें इस जिम्मेदारी से मुक्त किया जाए। उमर से भेंट के बाद राज्यपाल एनएन वोहरा ने विभिन्न दलों के साथ बैठकों से संबंधित एक रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी थी।
अपनी रिपोर्ट में उन्होंने राज्य में राज्यपाल शासन लागू करने, उसकी अवधि व अन्य विकल्पों का भी ब्योरा दिया। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में बताया कि 12वीं विधानसभा के गठन के लिए हुए चुनावों में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है और न गठबंधन सरकार को लेकर संबंधित दलों में कोई समझौता हो रहा है।राज्यपाल की रिपोर्ट को केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने गत रात ही प्रधानमंत्री कार्यालय को भेज दिया था। शुक्रवार दोपहर बाद केंद्र सरकार की सहमति और राष्ट्रपति से मिली मंजूरी के बाद राज्यपाल एनएन वोहरा ने जम्मू-कश्मीर में संविधान के तहत अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए राज्यपाल शासन लागू कर दिया।
उल्लेखनीय है चुनाव परिणामों में पीडीपी को 28, भाजपा को 25, नेकां को 15, कांग्रेस को 12, पीपुल्स कांफ्रेंस को दो, माकपा और पीडीएफ के अलावा एआइपी को एक-एक सीट मिली, जबकि दो सीटों पर निर्दलीय जीते हैं। सरकार बनाने के लिए 44 सदस्य अनिवार्य हैं, लेकिन कोई भी दल आपस में गठजोड़ कर इस आंकडे़ पर नहीं पहुंचा। हालांकि सरकार के गठन के लिए लगभग एक सप्ताह का समय और था, लेकिन उमर द्वारा इस्तीफा दिए जाने के बाद राज्यपाल शासन के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं रह गया था।

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