अमेरिकी हूं भारतीय-अमेरिकी नहींः जिंदल
वाशिंगटन। अमेरिका के लूसियाना प्रांत के भारतीय मूल के गवर्नर बॉबी जिंदल ने अमेरिका की शान में कसीदे काढ़ने और अमेरिका की खासियतों की नुमाइश करने के साथ अमेरिका में रह रहे भारतीय और अन्य मूल के लोगों को एक तरह से निष्ठा का पाठ पढ़ाया है। जिंदल ने खुद को भारतीय-अमेरिकी कहे जाने पर कड़ा एतराज जताते हुए कहा कि उनके माता-पिता भारत से यहां अमेरिकी बनने आए थे, न कि भारतीय-अमेरिकी। अमेरिका में बसे आव्रजकों को अमेरिका के बहु-सांस्कृतिक समाज में पूरी तरह से घुल-मिल जाने की सीख देते हुए गवर्नर ने कहा कि जो लोग त्वचा के रंग के अंतर की बात करते हैं वे सबसे सबसे संकुचित मानसिकता वाले लोग होते हैं।
जिंदल ने कहा कि उनके माता-पिता अमेरिकी स्वप्न की तलाश में यहां आए थे, वह उन्होंने यहां पाया भी है। उनके लिए अमेरिका महज कोई जगह नहीं बल्कि एक अवधारणा थी। मेरे माता-पिता ने मुझसे हमेशा यही कहा कि हम अमेरिकी बनने के लिए अमेरिका आए हैं। पूरी तरह से अमेरिकी, न कि भारतीय-अमेरिकी। जिंदल ने अपने संक्षिप्त बयान में यह बात कही, इस संबंध में वह लंदन की हेनरी जैक्सन सोसायटी में अपना विस्तृत भाषण सोमवार को देंगे।
जिंदल अमेरिका में किसी भी प्रांत के पहले भारतीय मूल के गवर्नर हैं। जिंदल ने कहा कि वह अपने भाषण के जरिये देशों की मजबूती के लिए आव्रजकों को आत्मसात किए जाने और स्वतंत्रता सुरक्षित रखने की मांग करेंगे। खुद को भारतीय-अमेरिकी कहे जाने से परहेज का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि यदि हम भारतीय बनना चाहते, तो हम भारत में ही रुकते। इसका मतलब यह नहीं है कि हम भारत से होने पर शर्मिदा है, हमें भारत से प्यार है। लेकिन हम अमेरिका इसलिए आए हैं क्योंकि हमें ज्यादा अवसरों और स्वतंत्रता की तलाश थी।
जिंदल ने कहा, ‘मैं हाइफन लगाकर अमेरिकी कहे जाने वाली पहचान को स्वीकार नहीं करता। इस विचार के कारण मुझे मीडिया को लेकर कुछ शिकायत है। मीडिया लोगों के साथ भारतीय-अमेरिकी, आयरिश-अमेरिकी, अफ्रीकी-अमेरिकी, इटेलियन-अमेरिकी, मेक्सिकन-अमेरिकी जैसे संबोधन लगाना पसंद करता है। मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैं लोगों एक सेकेंड के लिए भी यह सुझाव नहीं देना चाहता कि वे अपनी उपवर्गीय विरासत को लेकर शर्मिदा हों।
जिंदल ने कहा कि यह पूरी तरह से तार्किक है कि देश इस बात का भेद करें कि वे अपने यहां ऐसे लोगों को आने की इजाजत दें जो उसकी संस्कृति को आत्मसात करना चाहते है, या ऐसे लोगों को जो उसकी संस्कृति को नष्ट करना चाहते हैं अथवा अपनी एक अलग संस्कृति कायम करना चाहते हैं। हर देश के लिए यह पूरी तरह से तार्किक और जरूरी भी है कि वे ऐसे लोगों में भेद करें कि कौन उसे स्वीकार करना चाहता है और कौन उसे विभाजित करना चाहता है।
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