संविधान के खिलाफ है फांसी, इसलिए कोली को उम्रकैद
इलाहाबाद। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फांसी की सजा को संविधान के अनुच्छेद 21 के जीवन के अधिकार के खिलाफ करार दिया है। अदालत ने पहले जारी डेथ वारंट को भी असंवैधानिक करार दिया तथा कहा कि कैदी को तन्हाई में रखना सुप्रीम कोर्ट के फैसलों एवं संवैधानिक अधिकारों के विपरीत था। हाई कोर्ट ने बुधवार को यह बात निठारी कांड के दोषी सुरेंद्र कोली की फांसी की सजा को बदलते हुए कही।
उत्तर प्रदेश सरकार की सुस्ती ने नोएडा के लोमहर्षक निठारी हत्याकांड के दोषी सुरेंद्र कोली को मृत्युदंड से बचा लिया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कोली की फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि कोली की दया याचिका पर फैसला लेने में राज्य सरकार ने बहुत देर की। इसी आधार पर उसकी फांसी की सजा बदलने के लिए याचिका भी दाखिल थी। इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार की कार्यप्रणाली भी बुधवार को कठघरे में थी। मंगलवार को सुनवाई पूरी हुई थी और बुधवार को मुख्य न्यायाधीश डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल की खंडपीठ ने खुली अदालत में फैसला लिखाया। सरकार ने गुमराह किया
राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि कोली द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल पुनर्विचार अर्जी की वजह से दया याचिका के निस्तारण में देरी हुई। कोर्ट ने इस स्पष्टीकरण को पर्याप्त नहीं मानते हुए कड़ी टिप्पणी की कि राज्य सरकार ने अदालत को गुमराह करने की कोशिश की। कोर्ट ने कहा कि अर्जी के आधार पर देरी का तर्क भ्रामक है क्योंकि अर्जी का दया याचिका से कोई संबंध नहीं था। प्रदेश के गृह विभाग ने पहले यह कहा कि उसे इस मामले में क्षेत्राधिकार नहीं है पर इसके बाद प्रमुख सचिव, गृह ने याचिका निरस्त करने के लिए राज्यपाल को संस्तुति भी कर दी जबकि यह काम कानून मंत्रालय का था।
26 माह की देरी
पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स और सुरेंद्र कोली की याचिकाओं को मंजूर करते हुए कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को प्रकरण भेजने में 26 माह की देरी की और जिसका उचित स्पष्टीकरण भी वह नहीं दे सकी। महाधिवक्ता विजय बहादुर सिंह का कहना था कि सरकार ने यथाशीघ्र निर्णय लिया और कोली के जघन्य अपराध को देखते हुए दया याचिका निर्णीत करने में हुई देरी का उसे फायदा नहीं दिया जा सकता। दया याचिका निर्णीत करने की कोई समय सीमा तय नहीं है। भारत सरकार के अपर सॉलीसिटर जनरल अशोक मेहता ने तर्क दिया कि केंद्र सरकार ने देर नहीं की है, जो भी समय लगा है वह प्रक्रियात्मक है।
पांच आपराधिक मामलों में फांसी
यह मामला रिंपा हलधर की जघन्य हत्या से जुड़ा हुआ है जिसमें सत्र न्यायालय के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने भी बहाल रखा था। इसके अलावा कोली के खिलाफ पांच आपराधिक मामलों में सत्र न्यायालय से फांसी की सजा हुई है जिसकी अपील हाई कोर्ट में विचाराधीन है। दर्जनों अन्य मामलों में विचारण चल रहा है। कोर्ट ने साफ कर दिया कि 13 अगस्त, 2005 का शासनादेश कोली के प्रकरण में लागू नहीं होगा। इस शासनादेश में समय पूर्व रिहाई का प्रावधान है।
‘फांसी की सजा को संविधान के अनुच्छेद 21 के जीवन के अधिकार के खिलाफ है।’ – इलाहाबाद हाई कोर्ट
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