भारतीयों के खून में धर्मनिरपेक्षता : वेंकैया

चेन्नई। केंद्रीय मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने शिवसेना के बयान से उठे विवाद को शांत करने की कोशिश में कहा कि भारतीय लोगों के खून में धर्मनिरपेक्षता है। सरकार भी इसके लिए प्रतिबद्ध है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्षता को हटाने का कोई विचार नहीं है।

केंद्रीय मंत्री नायडू ने कहा कि सरकार पूरी तरह से धर्मनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्ध है। धर्मनिरपेक्षता तो भारतीय लोगों के खून में मिली हुई है। ये हमारी संस्कृति का हिस्सा है। हालांकि धर्मनिरपेक्षता का उल्लेख भारतीय संविधान की मूल प्रस्तावना में नहीं था। इसे संविधान में आपातकाल के दौरान तत्कालीन सरकार ने 44वें संशोधन में जोड़ा था। लेकिन मोदी सरकार का विज्ञापन संविधान की मूल प्रस्तावना पर था। सरकार धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में है और उसके लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध भी है। साथ ही इसे संविधान से अलग करने का कोई विचार नहीं है।

उल्लेखनीय है कि वेंकैया का ये स्पष्टीकरण उस सरकारी विज्ञापन के विषय में है जिसमें संविधान की प्रस्तावना की बात की गई लेकिन उसमें ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवाद’ शब्दों को नहीं शामिल किया गया था। विज्ञापन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान था और पृष्ठभूमि में कुछ आम लोगों के फोटो भी थे।

परमाणु कूटनीति पर वेंकैया ने कहा कि ये देश के व्यापक हित में है इसलिए इस पर चर्चा-परिचर्चा का कोई मतलब नहीं है। इस समझौते की शुरूआत कांग्रेस के शासनकाल में हुई थी लेकिन आज कांग्रेस ही इस पर हल्ला कर रही है। कांग्रेस को यह हजम ही नहीं हो रहा कि नरेंद्र मोदी के फैसले से देश की जनता खुश है।

पीएमके और सपा ने जताया विरोध :

राजग सरकार के सहयोगी पीएमके ने जमकर विरोध किया। पीएमके संस्थापक एस.रामदास ने कहा कि सरकार का ये कहना कि मूल प्रस्ताव में धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्द नहीं था गलत है। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का ये बयान स्तब्धकारी है। वहीं, पटना में मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने कहा कि कुछ लोग कह रहे हैं कि धर्मनिरपेक्षता की कोई आवश्यकता ही नहीं है। भारत को इस बारे में भूल जाना चाहिए। यह बहुत ही चिंताजनक है। इधर, समाजवादी पार्टी के नेता शिवपाल यादव ने लखनऊ में कहा कि धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्दों को हटाने के बारे में सोचना भी दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है।

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