ब्रह्माोस मिसाइल का अनुभव अन्य मंचों पर काम में लाना चाहता है भारत
मास्को । भारत ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह रूसी सहायता वाली ब्रह्माोस सुपरसोनिक मिसाइल परियोजना की सफलता को रक्षा क्षेत्र के अन्य मंचों एवं उपकरणों पर दोहराना चाहता है। ऐसा इसलिए कि दोनों देशों के बीच सैन्य तकनीकी सहयोग की एक मजबूत बुनियाद है।
पहली बार राष्ट्रपति के रूप में यहां पहुंचे प्रणब मुखर्जी ने पांच दिवसीय रूस यात्रा का आरंभ करते हुए यहां यह बात कही। उन्होंने कहा, ‘हमारा सैन्य तकनीकी सहयोग की एक मजबूत बुनियाद है। इसमें अब उन्नत रक्षा प्रणाली के लिए संयुक्त शोध, डिजाइन, विकास और उत्पादन शामिल है। ब्रह्माोस रक्षा सुपरसोनिक मिसाइल परियोजना इसका जीवंत उदाहरण है।
ब्रह्माोस रूस के एनपीओ मशीनोस्ट्रोएइनिया और भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) का संयुक्त उपक्रम है। दोनों ने मिलकर 1998 में ब्रह्माोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाई थी। राष्ट्रपति मुखर्जी ने रूसी समाचार एजेंसी इतर तास से कहा, हम मानते हैं कि अब ‘मेक इन इंडिया’ पहल ने रूसी हथियार प्रणाली और उनके पुर्जो को बनाने के लिए भारत में संयंत्र लगाने के लिए बहुत रोमांचक व नए मौके मुहैया कराए हैं। उन्होंने कहा कि इस बारे में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात हुई है और उन्होंने इस पर बहुत गर्मजोशी से प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
हम लोग और सक्रियता के साथ सेवाओं के आदान-प्रदान, प्रशिक्षण में सहयोग और नियमित सैन्य अभ्यास पर जोर दे रहे हैं। राष्ट्रपति ने आतंकवाद पर दोनों देशों की चिंता को समान बताया। उन्होंने परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में रूस के सहयोग का उल्लेख करते हुए कुडानकुलम को इसकी मिसाल बताया। दोनों देशों के बीच तेल और प्राकृतिक गैस के क्षेत्र में मिलकर काम करने को राजी हैं। रूस पहला देश था जिसके साथ भारत ने वर्ष 2000 के अक्टूबर में रणनीतिक साझीदारी पर औपचारिक रूप से समझौता किया था।
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