जनता परिवार का विलय खटाई में, बिहार में गठबंधन पर दांव-पेंच शुरू

पटना  बिहार के चुनाव से पहले जनता परिवार का महाविलय खटाई में पड़ने से अब सीटों के तालमेल पर भी दांव-पेंच शुरू हो गया है। गठबंधन में अधिक से अधिक सीटें हासिल करने के लिए सत्ताधारी जदयू और राजद के बीच दबाव की राजनीति शुरू हो गई है।
जनता परिवार के महाविलय पर दोनों दलों के नेताओं में जो सहमति बनती दिखाई दे रही थी वह सपा नेता रामगोपाल यादव के बयान के बाद बिखरने लगी है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने गुरुवार को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति को प्रोन्नति में आरक्षण का मामला जिस तरीके से उठाया वह नीतीश कुमार को नागवार लगा। दलित और महादलित कार्ड तो वह खुद खेलते रहे हैं, ऐसे में इसे कोई और खेले वह कभी नहीं चाहेंगे। यही वजह है कि उन्होंने तुरंत साफ कर दिया कि सरकार पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील करेगी। कानूनी सलाह ली जा रही है। यह मांझी के ‘भूत’ का ही असर है जो दोनों दल के नेता इसकी वकालत को मजबूर हैं। मांझी की घर वापसी का शिगूफा भी दबाव की राजनीति के तहत छोड़ा जा रहा है।
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सीटों के बंटवारे पर खींचतान
बड़े भाई और छोटे भाई में विवाद केवल सीटों की संख्या पर ही नहीं है। बड़े भाई गठबंधन में भी बड़ी भूमिका चाहते हैं। जबकि छोटे भाई के साथ संकट है कि गत विधानसभा चुनाव में उनके दल ने 115 सीटें जीती थीं। दस पांच सीटों की बात हो तो कोई बात नहीं, पर बड़े भाई की ओर से सवा सौ से अधिक सीटों पर दावा किया जा रहा है। डॉ. रघुवंश प्रसाद ने तो 145 सीटों पर दावा ठोंक दिया है। इसी खीझ में नीतीश कुमार ने भी कह दिया दावा के लिए तो 243 सीटें हैं।

इन सीटों पर भी फंसा पेंच
जदयू और राजद में गठबंधन को लेकर पेंच केवल सीटों की संख्या पर ही नहीं है। इसकी वजह जदयू की कई सीटें भी हैं, जो राजद किसी कीमत पर छोड़ने को तैयार नहीं। नवादा, अतरी, कुर्था, जहानाबाद, राघोपुर, परसा समेत करीब दर्जन भर से ज्यादा ऐसी सीटें हैं, जो लालू प्रसाद किसी सूरत में छोड़ने वाले नहीं हैं। अफसरों के तबादलों में हिस्सेदारी भी मुद्दा राजनीतिक हलके में चर्चा है कि जदयू और राजद के तल्ख रिश्ते के पीछे कुछ और भी कारण हैं। इनमें एक है राजद को तबादलों में पर्याप्त हिस्सेदारी नहीं मिलना, खासकर अनुमंडलाधिकारियों की पोस्टिंग में। इसके अलावा बालू का ठेका भी दोनों दलों के नेताओं के तल्ख रिश्तों में एक बड़ा कारण है। राज्य की सियासत के पारखियों की मानें तो तबादलों का दौर समाप्त होने के बाद रिश्तों में खटास और बढ़ेगी।

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