भगवान बुद्ध ओर उनके सन्देशों का अमृत
बुद्ध पुर्णिमा वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की पुर्णिमा का दिन है। इसी शुभ दिन भगवान बुद्ध ने नेपाल के लुंबिनी नामक स्थान में 563 ईसा वर्ष पूर्व जन्म लिया। यह वही दिन है जिस दिन 528 ईसा वर्ष पूर्व उन्होंने बोधगया में एक वृक्ष के नीचे यह जाना कि सत्य क्या है? और इसी दिन कुशीनगर में 483 ईसा वर्ष पूर्व 80 वर्ष की उम्र में अपनी नश्वर देह का त्याग किया।
यह एक अद्भुत संयोग है कि इसी दिन उन्होंने जन्म लिया, इसी दिन निर्वाण को प्राप्त किया और इसी दिन अपने शरीर का त्याग किया इसीलिए यह शुभ दिन भगवान बुद्ध को समर्पित है और भगवान बुद्ध की जयंती के रूप में ‘बुद्ध पुर्णिमा’ के नाम से मनाया जाता है।
भगवान बुद्ध ने सही अर्थों में मनुष्य को जीवन जीना सिखाया, अपने आपको जानना सिखाया, जीवन की नश्वरता को शाश्वतता में अनुभव करना सिखाया और संसार में एक ऐसी वैश्विक क्रांति की लहर पैदा की जिसे सभी ने स्वीकारा, अंगीकार किया और उनके होते चले गए।
बौद्ध ऐसा धर्म है जो विश्व के सर्वाधिक देशों में फैला हुआ है। भगवान बुद्ध की प्रतिमाएं दुनिया के सर्वाधिक देशों में मिलती हैं और खुदाई से भी प्राप्त होती हैं। भगवान बुद्ध का जीवन सत्य की खोज में, निर्वाण प्राप्ति में तथा लोगों को उपदेश देने व सन्मार्ग पर लाने में लगा। उन्होंने मानव मनोविज्ञान और दुख के हर पहलू के विषय में चर्चा की और उसके समाधान भी बताए। भगवान बुद्ध ने जितना कहा और जितना समझाया उतना संभवत: किसी और ने नहीं किया।
उनके सैंकड़ों ग्रंथ ऐसे हैं जो उनके प्रवचनों से भरे हुए हैं लेकिन उनमें कहीं भी कोई बात दोहराई नहीं गई है। जिसने बुद्ध को पढ़ा, समझा वह उनका भिक्षु हुए बगैर नहीं रह सका। भगवान बुद्ध का मार्ग दुख से मुक्ति पाकर निर्वाण अर्थात शाश्वत आनंद की प्राप्ति का मार्ग है।
एक बार भगवान बुद्ध से एक भिक्षु ने प्रश्र किया, ‘‘बुद्ध हो जाने के बाद आपने अपने मन को कहां लगाया? क्योंकि बुद्ध बन जाने के बाद उसके लिए यह संसार तो निरर्थक है और इस निरर्थक संसार में रहने के लिए अपने मन को कहीं पर भी लगाना आवश्यक है।’’
उन्होंने उत्तर दिया, ‘‘तुम लोगों से चर्चा करने में।’’
निश्चित रूप से भगवान बुद्ध ने जितने प्रवचन किए, जितने लोगों को उपदेश दिए, उतने और किसी ने नहीं किए। पश्चिम के बुद्धिजीवी और वैज्ञानिक भगवान बुद्ध के उपदेशों को अब अधिक गंभीरता से ले रहे हैं। चीन, जापान, श्रीलंका और भारत सहित दुनिया के अनेकों बौद्ध राष्ट्रों में पश्चिमी देशों की संख्या अधिक है जहां सर्वाधिक संख्या में बौद्ध मठ हैं। अब सभी यह भी जानने लगे हैं कि पश्चिमी धर्मों में जो शिक्षाएं हैं, वे बौद्ध धर्म से ली गई हैं क्योंकि बौद्ध धर्म ईसा मसीह से 500 वर्ष पूर्व विश्व में फैल चुका था और इसे फैलाने में उन हजारों भिक्षु-भिक्षुणियों ने सहयोग किया था जो भगवान बुद्ध के शिष्य बन गए थे और संकल्पित थे कि उनके उपदेशों का अमृत केवल उन तक सीमित नहीं रहना चाहिए, वरन् इसकी मिठास पूरे विश्व में फैलनी चाहिए और कठिन संघर्षों से जूझते हुए भूख-प्यास सहते हुए भी उन्होंने दूसरे देशों में जाकर भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का प्रचार किया।
उनके इन्हीं प्रयासों का परिणाम था कि उस समय के साधन-सुविधा विहीन जीवन में भी भिक्षुगण समुद्रों, पहाड़ों, हिमालय के शिखरों को लांघ कर पूरे विश्व में फैल गए और अपने भगवान को अमर कर दिया। उस समय दुनिया का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं बचा था जहां बौद्ध भिक्षुओं के कदम न पड़े हों। उस समय विश्वस्तर पर पहली बार धार्मिक क्रांति हुई थी जिसने धर्म को दार्शनिक स्तर से व्यावहारिक स्तर पर स्थापित किया। लोगों को भ्रम की दुनिया से निकाल कर यथार्थ का बोध कराया और जीवन को सही मार्ग की ओर अग्रसर किया।
भगवान बुद्ध का कहना था कि वह केवल मार्ग बताने वाले हैं और अपने मोक्ष के लिए व्यक्ति को स्वयं ही प्रयास करना होगा। उन्होंने ‘मोक्ष-दाता’ को ‘मार्ग-दाता’ से हमेशा भिन्न रखा और स्वयं को ‘मार्ग-दाता’ ही कहा। एक बार एक ब्राह्मण की इसी शंका का निवारण करते हुए भगवान बुद्ध ने कहा, ‘‘एक व्यक्ति तुमसे राजगृह जाने का रास्ता पूछता है और तुम उसे ठीक मार्ग बता देते हो लेकिन वह उसे छोड़ कर गलत मार्ग पर चल देता है, पूर्व दिशा के बदले पश्चिम की ओर चला जाता है तो वह राजगृह नहीं पहुंच पाएगा लेकिन एक दूसरा आदमी आता है, वह भी राजगृह का रास्ता पूछता है उसे भी तुम सही रास्ता बताते हो तो वह तुम्हारे बताए मार्ग पर चल कर राजगृह पहुंच जाता है। अब यह बताओ कि इन दो परिणामों के बारे में तुम क्या करोगे?’’ब्राह्मण ने उत्तर दिया, ‘‘मैं कुछ नहीं करूंगा, मेरा तो काम मार्ग बताना है। चलना और जाना उनका काम है।’’
यह सुनकर भगवान बुद्ध बोले, ‘‘हे ब्राह्मण! मैं भी क्या करूं, मेरा काम भी केवल रास्ता बताना है।’’ बुद्ध ने हमेशा स्वयं को अन्य मनुष्यों की तरह प्रकृति पुत्र कहा। बुद्ध का मार्ग खोज का मार्ग है और इसी खोज के आधार पर उन्होंने मनुष्य जीवन का सही मर्म लोगों को बताया।
भगवान बुद्ध ने कभी भी अपने अनुयायियों को मोक्ष या निर्वाण देने का वायदा या लालच नहीं दिया। हां, यह अवश्य कहा कि जो उनके बताए मार्ग पर पूर्ण समर्पण से चलेगा, उसे निर्वाण की प्राप्ति अवश्य होगी।बुद्ध ने अपने मार्ग को मध्यम मार्ग कहा और अपने भिक्षुओं को उपदेश दिया, ‘‘भिक्षुओ! इन दो अतियों का सेवन नहीं करना चाहिए।
(1) काम-सुख में लिप्त होना और (2) शरीर को पीड़ा देना, इन दो अतियों को छोड़ कर जो मध्यम मार्ग है, जो अंतर्दृष्टि देने वाला, ज्ञान कराने वाला और शांति देने वाला है, वही मध्यम मार्ग श्रेष्ठ है और यह आठ अंगों वाला (अष्टांगिक) है-सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वचन, सम्यक कर्म, सम्यक जीविका, सम्यक व्यायाम (अभ्यास), सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि।’’ यहां सम्यक का अर्थ है-सही, संतुलित, उचित व ठीक।
इस तरह भगवान बुद्ध सम्यक शब्द के माध्यम से यह उपदेश अपने जीवन के अनुभव से गुजर कर देते हैं। जिस तरह से वीणा को अधिक कस कर या अधिक ढीला छोड़ कर बजाया नहीं जा सकता उसी तरह जीवन में अति कठोरता या अति ढीलापन बरतना भी नुक्सानदायक होता है इसीलिए भगवान बुद्ध का इस उपदेश में यह ‘सम्यक’ शब्द उचित ही है।
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