यूपीए सरकार ने नहीं दिखाई सही तस्वीर
नई दिल्ली। गर्त में जाती अर्थव्यवस्था, रोजाना भ्रष्टाचार केलगते नए आरोप, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के बीच रिश्ते खराब होने की खबरों के बीच यूपीए-दो के पिछले चार वर्ष का रिपोर्ट कार्ड न तो अर्थव्यवस्था की सही तस्वीर पेश करता है और ना ही मौजूदा सामाजिक समावेश की। सरकार को बखूबी पता है कि रोजगार सृजन, गरीबी उन्मूलन व आर्थिक प्रगति के आंकड़े उसके दावे के खिलाफ जा सकते हैं। इसलिए उसने मानव विकास, सामाजिक समावेश, प्रशासन और विदेश नीति से जुड़े मुद्दों को जोर-शोर से प्रचारित किया है। मजेदार बात यह है कि सरकार की जिन फ्लैगशिप स्कीमों पर तमाम अन्य एजेंसियों ने उंगली उठाई है, उनको प्रचारित करने में केंद्र ने कसर नहीं छोड़ी है। मसलन, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनएचआरएम), महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को सरकार ने बड़ी उपलब्धि बताया है,जबकि इन दोनों स्कीमों को लेकर कैग ने सरकार के तौर-तरीके पर सवाल उठाए हैं। कैग ने इनमें भारी घोटाले का भी पर्दाफाश किया है। जिन मुद्दों पर सरकार के भीतर भी सहमति नहीं बन पाई, उस पर भी अपनी खूब पीठ थपथपाई है। मसलन, प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक को संसद में पेश करने को अहम उपलब्धि बताया गया है, जबकि इसे लागू करने को लेकर अभी तक वित्त व कृषि मंत्रलय में विवाद हैं। गत दिनों संसद में पेश भूमि अधिग्रहण बिल को भी रिपोर्ट कार्ड में खास जगह दी गई है। हकीकत यह है कि इस विधेयक को लेकर वाणिय, शहरी विकास, वित्त और ग्रामीण विकास मंत्रालय के बीच दो वर्ष तक विवाद रहा। आधार कार्ड और राष्ट्रीय जनगणना रजिस्टर को भी उपलब्धि बताया है, जबकि आधार प्राधिकरण और गृह मंत्रालय के बीच रस्साकस्सी जारी है। सरकार का दावा है कि महंगाई तीन वर्ष के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है। यह दावा शायद ही किसी के गले उतरे। ताजे आंकड़े भले ही सरकार के दावे को सही साबित करें, लेकिन इससे इन्कार नहीं कि पिछले चार वर्ष में सरकार महंगाई थामने में एकदम नाकाम रही है। थोक व खुदरा महंगाई दर में अब भी दोगुने से यादा का अंतर है। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस पर सरकार के फैसलों ने जनता की कमर तोड़ दी है। खाद्य उत्पादों की आपूर्ति अभी तक सुधरी नहीं है। सरकार ने बहुत चालाकी से बेहद चुभने वाले, लेकिन आम सरोकार से जुड़े मुद्दों पर चुप्पी साधी है। 2009 में सरकार गठन के समय बेरोजगारी दूर करने की बातें करने वाली सरकार इसे पूरी तरह से भूल चुकी है। देश की अर्थव्यवस्था के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती बताए जा रहे चालू खाते में घाटे का भी कहीं जिक्र नहीं है। गरीबी उन्मूलन की उपलब्धियों का भी कहीं जिक्र नहीं है। सरकार की तरफ से विदेश नीति की भी खूब तारीफ की गई है।
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