यूरोप जानता था अमेरिका का सच
टोरंटो,आप इस वक्त इंटरनेट में क्या पढ़ रहे हैं, यह सिर्फ आप को ही नहीं, अमेरिका को भी पता है। पूरी दुनिया अमेरिका की इंटरनेट जासूसी के बारे में जान कर सकते में आ गयी, लेकिन यूरोप को तो यह पहले से ही पता था।
अमेरिका के इंटरनेट जासूसी प्रोग्राम प्रिम की इन दिनों यूरोप में काफी निंदा हो रही है, लेकिन ऐसा नहीं है कि एडवर्ड स्नोडन के खुलासे से पहले यूरोप अंधेरे में था। बल्कि सचाई तो यह है कि 2011 से यूरोप को इस बात की जानकारी थी कि अमेरिका इंटरनेट में जासूसी कर रहा है।
2012 की रिपोर्ट
जर्मन ब्लॉगर बेंजामिन बेर्गेमन का इस बारे में कहना है, स्नोडन ने प्रिम के बारे में जो खुलासा किया है, इसे (इंटरनेट सुरक्षा से) जुड़े लोग तो बहुत पहले से ही इसके बारे में जानते थे। डॉयचे वेले से बातचीत में बेर्गेमन ने कहा कि यूरोपीय संसद की 2012 की एक रिपोर्ट भी इस ओर संकेत करती है कि अमेरिकी अधिकारी 2008 से ही इंटरनेट में सूचना पर नजर रख रहे थे। इसमें तो अब कोई हैरानी की बात नहीं है।
एडवर्ड स्नोडन ने अमेरिका के इंटरनेट जासूसी प्रोग्राम प्रिम का खुलासा किया।
2012 में आई रिपोर्ट पर अदालत में भी बहस हुई। रिपोर्ट बनाने वालों का आरोप था कि यूरोप में इंटरनेट सुरक्षा को ले कर यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा। यहां तक की 2011 के मध्य से पहले तक तो ना यूरोपीय आयोग, ना ही यूरोपीय संसद और ना ही इंटरनेट के कानून बनाने वालों को फिसा (एफआईएएसएए) के बारे में कोई भी जानकारी नहीं थी। फिसा यानी अमेरिका का फॉरेन इंटेलिजेंस सरविलेंस अमेंडमेंट एक्ट इस बीच तीन साल से सक्रिय था। रिपोर्ट में इस बात की चेतावनी दी गयी कि अमेरिका इंटरनेट क्लाउड में रखी गयी पूरी जानकारी पर नजर रख सकता है और यह गैर अमेरिकी लोगों पर भी लागू हो रहा है।
रूस और चीन पर ध्यान
साइबर एक्सपर्ट जूलियन योंदेबोस इस रिपोर्ट के लेखकों में से एक हैं। उनका कहना है कि इंटरनेट सुरक्षा को ले कर यूरोप ने अपने साधनों को बस एक ही दिशा में खर्च कर दिया, ईयू का ध्यान इसी पर केंद्रित रहा कि ईयू में रहने वाले लोग किस तरह से नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। यानी यूरोप में हैकरों पर चर्चा होती रही, इंटरनेट में गलत पहचान बताने वालों पर ध्यान दिया गया और इंटरनेट कंपनियों पर हमेशा नजर रखी गयी। फेसबुक और गूगल की सारी जानकारी अमेरिका में जमा है।
योंदेबोस बताते हैं कि राजनैतिक तौर पर भी देखा जाए तो शक के घेरे में हमेशा रूस और चीन ही रहे, यूरोप ने कभी अमेरिका को संदेह भरी नजरों से नहीं देखा। हालांकि 9/11 के बाद से अमेरिका में इंटरनेट को ले कर बदले कानूनों पर यूरोप में भी चर्चा हुई थी। योंदेबोस के अनुसार अमेरिका के साथ यूरोप के रिश्ते अहम हैं, इसलिए यूरोप को अमेरिका के खिलाफ कोई कदम लेने से पहले सोचना होगा।
यूरोप में लोग निजता के हनन पर अदालत में जा सकते हैं, लेकिन अमेरिका में ऐसा कोई कानून नहीं है। अब यूरोप के लोगों को यह समझ नहीं आ रहा है कि यदि वे शिकायत करें भी तो उसकी सुनवाई कहां होगी। बेर्गेमन का कहना है कि यदि इतने बड़े खुलासे के बाद भी अधिकारियों की आंखें नहीं खुली हैं तो ऐसा किसी भी तरह नहीं किया जा सकता। योंदेबोस भी इस से सहमत हैं। उनका मानना है कि इंटरनेट सुरक्षा और अमेरिका की जासूसी को यूरोप में कम आंका गया, हम जानते थे कि सूचनाएं जमा की जा सकती हैं, पर हमने यह नहीं सोचा था कि ऐसा हो ही जाएगा।
अमेरिका की दलील है कि वह दुनिया को सुरक्षित बनाने के लिए ऐसा कर रह है। योंदेबोस कहते हैं, सुरक्षा जरिया होना चाहिए, उद्देश्य नहीं। बेर्गेमन कहते हैं कि प्रिम के खुलासे ने एक चीज साफ कर दी है, आतंकवाद का डर और उस से बचने के लिए उपाय, जो किए गए हैं, अब चरम पर पहुंच गए हैं।
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