शहरी कांक्रीट में भटकते जंगली जानवर
ऐसा लगता है कि अपनी रिहाईश को लेकर इंसान और जंगली जानवरों के बीच जंग सी छिड़ी हुई है. जंगल नष्ट हो रहे हैं और वहां रहने वाले शेर चीते और तेंदुए जैसे शानदार जानवर कंक्रीट के आधुनिक जंगलों में बौखलाए हुए भटक रहे हैं. उनके लिए जंगल और शहर के बीच का फर्क मिटता जा रहा है. औद्योगीकरण, और विकास के नाम पर पर्यावरण को नष्ट किया जा रहा है, कांक्रीट के जंगल बहुत तेजी से उगाये जा रहे हैं. पूंजीवाद के देवताओं ने अपने विकास और निवेश के दायरे को जंगलों के पार पंहुचा दिया है. इन सबसे जंगलों का पूरा तंत्र छिन्न भिन्न हो गया है वहां की खाद्य श्रृंखला बिखर गई हैं और नदियां सूख रही हैं. अवैध शिकारी और लकड़ी व खनन के ठेकेदार वहां डेरा जमाये हुए हैं. राष्ट्रीय राजमार्गों ने भी जंगलों के भूगोल को बदल डाला है इसकी वजह से जानवर दुर्घटनाओं के शिकार भी हो रहे है. इस इंसानी कहर से परेशान होकर जंगली जानवर उन्हीं इंसानों की बस्तियों की तरफ भागने को मजबूर हुए हैं जो इसके लिए जिम्मेदार है. अब वे शहरों में भी पनाह तलाश रहे हैं. उन्हें कहाँ पता होगा कि शहरों में भटकाव को कोई मंजिल नहीं होती हैं.
अरावली के जंगलों से मंडावर गावं की तरफ भागे उस तेंदुए की गुनाह भी यही थी कि वह इंसानी बस्तियों में पनाह तलाश रहा था जहाँ बीते 24 नवम्बर को इंसानों ने उसे पीट-पीटकर मार डाला. इस दौरान पुलिस और वन विभाग की टीम अक्षम होकर तमाशा देखती रही. वे चाहते तो समय पर पहुँच सकते थे और तेंदुए को सुरक्षित पकड़ कर उसे “भीड़ के न्याय” से बचा भी सकते थे लेकिन ऐसा नहीं हो सका. गावं वालों का कहना है कि वेदहशत में थे इसीलिए उन्होंने तेंदुए को मार डाला. इससे पहले 2011 में भी इसी “खतरे” की वजह से फरीदाबाद के खेड़ी गुजरान में भीड़ ने एक तेंदुए को पीट-पीटकर मार डाला था. लेकिन इंसानों से ज्यादा खतरे में तो अरावली के वन्य जीव हैं. सर्वाच्च न्यायालय के आदेश के बावजुद भी गुडगांव की अरावली पर्वत श्रंखला में अवैध खनन औऱ प्राकर्तिक पेड़ों को काटा जा रहा है जो यहाँ सदियों से रहने वाले वन्य जीवों के जीवन का आधार रहे हैं. अरावली पर बिल्डरों ने भी अपना कब्जा जमाया हुआ है वहां जगह-जगह निर्माण गतिविधियां जारी हैं जिसकी वजह से तेंदुओं जैसे जंगली जानवर भागे फिर रहे हैं .पिछले दो सालों में वहां कम से कम आधा दर्जन तेंदुए सड़क दुर्घटना और भीड़ की न्याय की वजह से मारे जा चुके हैं.
पिछले कुछ सालों में देशभर में कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जिससे पता चलता है कि जंगली जानवर अपने अस्तित्व पर मंडरा रहे खतरे की वजह से जीने के नए तरीके खोजने को मजबूर है लेकिन यह उपाय भी उनके लिए जानलेवा साबित हो रही है. कुछ दिन पहले ही भोपाल शहर के कोलार क्षेत्र स्थित दानिश हिल्स मे बाघ को देखा गया है जिसने वहां वहां पर एक सुअर का शिकार भी किया. मुंबई जैसे शहरों में जंगली जानवरों का दिखाई दे जाना बहुत आम हो गया है. 2011 में फिल्म अभिनेत्री और राज्य सभा सांसद हेमा मालिनी के मुंबई स्थित बंगले में तेंदुआ घुस गया था. दरअसल मुंबई शहर फैलते-फैलते जंगलों के पास तक पहुँच चूका है जहां तेंदुए और दूसरे जंगली जानवर रहते है, बढ़ते दखल के चलते अब वे गाहे-बगाहे शहर में विचरण करने को मजबूर हैं. इसी तरह से पुणे, दिल्ली, ,मेरठ और गुड़गांव जैसे शहरों में इस तरह की घटनायें सामने आयीं हैं.
गुजरात के जूनागढ़ शहर के बाहरी इलाकों में बब्बर शेरों का देखा जाना बहुत आम हो गया है. पछले साल भोपाल के कलियासोत क्षेत्र में एक बाघ ने तो अपना इलाका ही बना लिया था . जिसकी वजह से कई महीनों तक शहर में दहशत बनी रही . जाहिर है पूरे देश में ऐसी घटनाएं रूकने की बजाए बढ़ती जा रही हैं, ऐसे में सवाल पुछा जाना चाहिए कि जानवर इसानों की बस्ती में घुस रहे हैं या इंसान जानवरों के क्षेत्र को कब्जा रहे हैं? आज़ादी के वक्त भारत की 70 फीसदी जमीन पर जंगल था लेकिन हम इसे 24 फीसदी तक ले आये हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में साढ़े 12 लाख हेक्टेयर में फैली जंगल की जमीन पर इंसानों ने अपनी अवैध बस्तियां बसा ली हैं. यह आंकड़ा पर्यावरणीय जरूरतों के हिसाब से भी बहुत कम है आदर्श स्थिति में देश में कम से कम 33 फीसदी ज़मीन पर जंगल होना चाहिए. इन सबकी की वजह से वन्यजीवों के संख्या में बहुत तेजी से कमी आई है और कई प्रजातियाँ तो विलुप्त भी चुकी है.
वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर की 2016 की रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर 2020 तक वन्य जीवों का दो तिहाई से भी ज्यादा हिस्सा विलुप्त हो जाएगा. इसी तरह से पिछले 100 सालों में बाघों की कुल संख्या में लगभग 96 प्रतिशत की कमी आ चुकी है. तर्क दिया जा सकता है कि मंडावर गावं लोग तेंदुये से डर गये थे इसलिए उसकी भीड़ द्वारा हत्या कर दी गयी .लेकिन अगर अगर गहराई से विचार किया जाए तो इससे कई सवाल उठेंगें जो मौजूदा दौर में इंसानों के जीने के तरीके और और प्रकृति व धरती के दुसरे प्रजातियों के प्रति हमारे व्यवहार को लेकर कई बुनियादी सवाल खड़े करते हैं. सोचने वाली बात ये है कि जंगली जानवरों और इंसानों के बीच यह टकराव एकतरफा है जंगली जानवर हमारे घरों में नहीं बल्कि बल्कि हम उनके घरों में घुस रहे हैं. हम उनके आस्तित्व लिये खतरा बनते जा रहे हैं. दावा तो धरती के सबसे बुद्धिमान प्राणी का है लेकिन हम यही नहीं समझ पा रहे हैं कि जंगल और यहाँ रहने वाले जानवर हमारी जैव विविधता का अभिन्न हिस्सा हैं. अगर यह खत्म होंगें या इनकी संख्या कम होगी तो इसके असर से हम भी नहीं बच सकेंगें. मानवता को प्रकृति जल , जंगल जमीन और दूसरी प्रजातियों के प्रति अपनी अवधारणा को लेकर तत्काल विचार करने की जरूरत है. इस एक इकतरफा टकराव और पर्यावरणीय असंतुलन से होने वाली तबाही को हम इंसान ही टाल सकते हैं.
—— जावेद अनीस ——
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