पावन पर्व गंगा दशहरा
हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि गंगा दशहरा के पावन पर्व पर मां गंगा में डुबकी लगाने से सभी पाप धुल जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वैसे तो गंगा स्नान का अपना अलग ही महत्व है, लेकिन इस दिन स्नान करने से मनुष्य सभी दु:खों से मुक्ति पा जाता है।
इस पर्व के लिए गंगा मंदिरों सहित अन्य मंदिरों पर भी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन स्वर्ग से गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। गंगा दशहरा के दिन गंगा नदी में स्नान करने से दस पापों का हरण होकर अंत में मुक्ति मिलती है।
गंगा दशहरा के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। इस दिन दान में सलू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से दोगुना फल प्राप्त होता है। ज्योतिष जी.एम. हिंगे के अनुसार गंगा जी को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के लिए अंशुमान के पुत्र दिलीप व दिलीप के पुत्र भागीरथ ने बड़ी तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माता गंगा ने उन्हें दर्शन दिया और कहा- मैं तुम्हें वर देने आई हूं।
राजा भागीरथ ने बड़ी नम्रता से कहा- आप मृत्यु लोक में चलिए। गंगा ने कहा- जिस समय मैं पृथ्वीतल पर अवतरण करुं, उस समय मेरे वेग को कोई रोकने वाला होना चाहिए। ऐसा न होने पर पृथ्वी को फोडक़र रसातल में चली जाऊंगी और लोग मुझमें पाप कैसे धो पाएंगे।
भागीरथ ने अपनी तपस्या से रुद्रदेव को प्रसन्न किया तथा समस्त प्राणियों की आत्मा रुद्रदेव ने गंगा जी के वेग को अपनी जटाओं में धारण किया।
क्यों पूजनीय है नदियां
भारतीय संस्कृति में देने वाले को देवता कहा जाता है और उसकी पूजा-अर्चना की जाती है। जल हमें जीवन देता है। इसलिए जल की प्रमुख स्रोत नदियों को पवित्र मान कर उनकी पूजा-अर्चना की परंपरा सदियों से चली आ रही है।
मानव शरीर जिन पंच तत्वों से मिलकर बना है, जल भी उनमें से एक प्रमुख तत्व है, जो न केवल उसे जीवन देता है बल्कि मानव शरीर को सुंदर और स्वच्छ भी बनाता है।
भारतीय संस्कृति में जल की सर्वाधिक महत्त है। भारत नदियों का देश है। यहां जिन नदियों को अत्यंत पवित्र माना जाता है, उनमें प्रमुख हैं- गंगा, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, ब्रह्मपुत्र, कावेरी और सिंधु। उलर भारत में गंगा, यमुना और सरस्वती का विशाल प्रवाह है। जल में अमृत का वास होता है। यह औषधि स्वरूप है। इसीलिए लोग जल-सेवार्थ प्याऊ खुलवाते हैं। किसी प्यासे को पानी पिलाना उसे जीवन देने के समान है। इसीलिए जलदान को सर्वोलम दान माना गया है।
सर्वाधिक पवित्र गंगा नदी
शास्त्रों और पुराणों में भी नदियों को पवित्र माना गया है, उसमें भी सर्वाधिक पवित्र मानी जाती है गंगा नदी। गंगा हिमालय के गोमुख से निकलकर भारत के विभिन्न शहरों से होते हुए गंगासागर में मिलती है। इसके तीव्र वेग से कहीं पृथ्वी बह न जाए, इसीलिए भगवान शंकर ने इसे अपनी जटाओं में धारण कर लिया। हरि के द्वार अर्थात हरिद्वार में गंगा जी की पूजा, अर्चना और स्नान के लिए भिन्न धार्मिक अवसरों पर श्रद्धालुओं की भीड़ एकत्र होती है। जीवन के सुखद या दु:खद सभी अवसरों पर भारतीय मान्यताओं के अनुसार हरिद्वार में गंगा स्नान को अत्यधिक महलवपूणर्् माना जाता है।
धार्मिक संस्कारों में जल पूजन
सनातन धर्म में सोलह संस्कार महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इन संस्कारों में जल का विशेष महलव है। प्रत्येक संस्कर के पूजन में जल-पूजन तथा जल-स्नान की विशेष महत्त है। इसके बिना यज्ञ और पूजन सफल नहीं माने जाते। जल को बुराइयों का संहारक माना गया है। बच्चों के जन्मोपरांत कुआं पूजन की भी परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि कुआं पूजन के बाद बच्चे को जल का स्पर्श कराकर उसे जल पिलाना आरंभ करना चाहिए। प्राचीन काल में कुएं ही जल प्राप्ति के साधन होते थे। इसीलिए जल को जीवन मानते हुए बच्चे की दीर्घायु की कामना से कुएं का पूजन किया जाता था। वस्तुत: जल को नदियों, सरोवरों, कुएं या कलश के रूप में पूजे जाने के पीछे यही कारण है कि जल जीवन का आधार है। ऋषि-मुनि भी नदियों के तटों पर ही निवास करते रहे हैं। सभी तीर्थस्थल नदियों और सागर तट पर स्थित हैं। इतिहास में भी इस बात का प्रमाण मिलता है कि सभी प्राचीन सभ्यताएं नदियों के तट पर ही विकसित हुई है। सागर और नदियां हमारे लिए प्रकृति की अमूल्य उपहार हैं।
नदियां और तीर्थस्थल
नदी तट पर ही छठ-पूजन का विशेष विधान है। शाम के समय और दूसरे दिन प्रात:काल वहां सूर्यदेव की पूजा की जाती है। गंगा, यमुना और सरस्वती की संगम स्थली तीर्थ प्रयागराज के तट पर प्रत्येक बारह वर्ष पर कुंभ का मेला लगता है और वहां लाखों श्रद्धालु जल-पूजन तथा स्नान करते हैं। साथ ही यहां लोगों के मिलने-जुलने से विचारों का आदान-प्रदान होता है, जीवन में उत्साह बना रहता है और भाईचारे की भावना भी बढ़ती है।
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