पुराणों के अनुसार पितृभक्ति का महत्व
पिता-पुत्र के संबंधों को उजागर करते हमारे पुराण हमें कई तरह की शिक्षा प्रदान करते हैं। वे हमें अपने पिता की आज्ञा, वचन का पालन, पिता का मान-सम्मान बरकरार रखने तथा पिता की आज्ञा मानने का आदेश एवं शिक्षा देते हैं। प्रस्तुत है कुछ पौराणिक पिता-पुत्र से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां…
राम और दशरथ की पितृ-भक्ति
अयोध्या के राजसिंहासन के सर्वथा सुयोग्य उत्तराधिकारी थे भगवान श्रीराम। सम्राट के ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते यह उनका अधिकार भी बनता था मगर पिता की आज्ञा उनके लिए सारे राजसी सुखों से कहीं बढक़र थी। अत: उनकी आज्ञा जानते ही राम बिना किसी प्रश्न के, बिना किसी ग्लानि या त्याग जताने के अहंकार के, वन की ओर जाने को तत्पर हो उठे।
स्वयं दशरथ के मन में श्रीराम के प्रति असीम स्नेह था, मगर वे वचन से बंधे थे। एक ओर पुत्र प्रेम था, तो दूसरी ओर कैकयी को दिया वचन पूरा करने का कर्तव्य। इस द्वंद्व में जीत कर्तव्य की हुई और दशरथ ने भरे मन से राम को वनवास का आदेश सुना दिया।
राम ने तो पिता की आज्ञा का पालन करते हुए नि:संकोच वन का रुख कर लिया किंतु दशरथ का पितृ हृदय पुत्र का वियोग और उसके साथ हुए अन्याय की टीस सह न सका। अंतत: राम का नाम लेते हुए ही वे संसार को त्याग गए।
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