चीन के ‘बेल्ट एंड रोड फोरम’ में भाग नहीं लेगा भारत
बीजिंग। भारत ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे’ (सीपीईसी) पर संप्रभुता संबंधी अपनी चिंताओं के मद्देनजर रविवार से यहां शुरू हो रहे हाई प्रोफाइल ‘बेल्ट एंड रोड’ शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लेगा। सीपीईसी ‘बेल्ट एंड रोड फोरम’ (बीआरएफ) पहल की अहम परियोजना है जिसकी दो दिवसीय बैठक में एक अहम भूमिका निभाने की संभावना है। बहरहाल, इसे लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। जानकारी रखने वाले सूत्रों ने कहा कि भारत इस सम्मेलन में भाग नहीं लेगा। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने पहले घोषणा की थी कि भारत का एक प्रतिनिधि चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की प्रतिष्ठित पहल ‘बेल्ट एंड रोड फोरम (बीआरएफ) में भाग लेगा। वांग ने 17 अप्रैल को यहां संवाददाताओं से कहा था, ‘‘भारतीय नेता यहां नहीं हैं लेकिन भारत का एक प्रतिनिधि इसमें हिस्सा लेगा।’’ उन्होंने यह नहीं बताया था कि भारत का प्रतिनिधित्व कौन करेगा। भारत के लिए यह एक मुश्किल फैसला था क्योंकि पिछले कुछ दिनों में चीन ने कई पश्चिमी देशों को इसमें शामिल होने के लिए राजी कर लिया है। इनमें अमेरिका भी शामिल है। अमेरिका ने लाभकारी व्यापार सौदा करने के बाद अपना एक शीर्ष अधिकारी भेजने पर शुक्रवार को सहमति जताई है। बैठक में भारत की अनुपस्थिति को अधिक तवज्जो नहीं देते हुए चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गांग शुआंग ने शुक्रवार को मीडिया को बताया कि भारतीय विद्वान बैठक में भाग लेंगे। पूर्वी चीन सागर के विवादित द्वीपों को लेकर पिछले कुछ वर्षों से चीन की कड़ी आलोचना झेलने वाले जापान ने भी एक उच्च स्तरीय राजनीतिक प्रतिनिधिमंडल भेजने पर सहमति जता दी है। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि 14-15 मई को होने वाले सम्मेलन से शी की शक्ति का आधार मजबूत होगा। शी इस साल के अंत में पांच साल का दूसरा कार्यकाल शुरू करने जा रहे हैं। इस सम्मेलन में 29 राष्ट्र एवं सरकार प्रमुख हिस्सा लेंगे। इनमें रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी शामिल होंगे। दक्षिण कोरिया, फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन समेत कई अन्य देशों ने इस सम्मेलन में शिरकत करने के लिए मंत्रि-स्तरीय या आधिकारिक शिष्टमंडल नियुक्त किए हैं। यह चीन द्वारा की गई भारी कूटनीतिक लॉबिंग का नतीजा है, लेकिन भारत से इतर अन्य देशों को ‘वन बेल्ट, वन रोड’ की पहल के साथ संप्रभुता से जुड़ी कोई आपत्ति नहीं है। योजना में सीपीईसी के महत्व को देखते हुए, ऐसी उम्मीद है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अपने देश के लिए ‘खेल बदलकर रख देने वाली’ इस पहल के महत्व को रेखांकित करने में प्रमुख भूमिका निभाएंगे। मौजूदा समय में एकमात्र ऐसी परियोजना है, जिसमें जल्द परिणाम देने की संभावना है। वह संभवत: सबसे बड़े शिष्टमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं, जिसमें चार मुख्यमंत्री और पांच संघीय मंत्री हैं। चाइना-पाकिस्तान फ्रेंडशिप असोसिएशन के अध्यक्ष शा जुकांग ने आधिकारिक मीडिया को बताया कि चीन पाकिस्तान में ऊर्जा और अवसंरचना से जुड़ी विभिन्न परियोजनाओं के लिए 46 अरब डॉलर के निवेश का वादा कर चुका है। शरीफ के अलावा इस सम्मेलन में आने वाले एकमात्र सरकार प्रमुख श्रीलंकाई प्रधानमंत्री रानिल विक्रमासिंघे होंगे। वह अपने देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मेजबानी करने के बाद सम्मेलन में शामिल होंगे। श्रीलंका में आठ अरब डॉलर से अधिक का चीनी निवेश है।
Comments are closed.