सरकार को आर्कटिक समुद्री मार्ग के उपयोग की उम्मीद
नई दिल्ली- केंद्र सरकार को उम्मीद है कि भारत आर्कटिक महासागर से होकर जाने वाले मार्ग का उपयोग छह से सात सालों में कर सकेगा। इस क्षेत्र में बर्फ तेजी से पिघल रही है। रूस के उत्तरी तट से होकर जाने वाला उत्तरी समुद्री मार्ग एक ओर यूरोप और दूसरी और पूर्वी और दक्षिण पूर्व एशिया को जोड़ता है। इस क्षेत्र में बर्फ तेजी से पिघल रही है और उम्मीद की जा रही है कि 2020 तक यह मार्ग उपयोग करने लायक हो जाएगा।
एक सूत्र के मुताबिक भारत को उम्मीद है कि वह इस मार्ग का उपयोग कर सकेगा। 13 हजार समुद्री मील वाले इस मार्ग से यूरोप और एशिया के बीच समुद्री यात्रा में लगने वाले समय में 40 फीसदी की बचत होगी।
भारत को इस साल के शुरू में आर्कटिक परिषद में पर्यवेक्षक का दर्जा दिया गया है। कुछ देशों ने गर्मियों में आइसब्रेकर का उपयोग कर इस मार्ग का उपयोग करना शुरू कर दिया है।
यदि यह मार्ग उपयोग करने लायक हो जाता है, तो पूर्वी और दक्षिणपूर्वी एशिया के देशों को हिंद महासागर, स्वेज नहर तथा भूमध्य सागर से होकर यूरोप जाने की जरूरत नहीं रह रहेगी7
पिछले साल 46 जहाज गर्मियों में इस उत्तरी समुद्री मार्ग से होकर गुजरे। आर्कटिक परिषद में 15 मई को भारत, चीन, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर को पर्यवेक्षक का दर्जा दिया गया है, जिसके आठ देशों में शामिल हैं-कैनेडा , डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, रूस, स्वीडन और अमेरिका।
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