जगमीत सिंह ने जीता बी.सी.उपचुनाव

– यॉर्क-सीमोक की सीट पर टोरीज का कब्जा हुआ
औटवा। उपचुनावों में बड़ा बदलाव करते हुए जगमीत सिंह ने ब्रिटीश कोलम्बिया की सीट जीत ली, एनडीपी के लिए यह चुनाव जीवन-मरण का प्रशन बन चुका था। परंतु जगमीत सिंह के लिए यह चुनाव जीतना ही काफी नहीं था, उनकी प्रमुख चुनौतियां अब आरंभ होगी। उन्हें सबसे पहले अपनी ही पार्टी के लोगों के ऊपर अपना विश्वास सिद्ध करना होगा। जहां पहले टॉम मलकेयर की यह टिप्पणी थी यदि सिंह उपचुनाव नहीं जीते तो वह केंद्रीय चुनाव कैसे जीत पाएंगे। ज्ञात हो कि बुरनाबाय दक्षिण में सिंह को अन्य पार्टियों से 38 प्रतिशत अधिक मत मिलें, जबकि उनके प्रतिद्वंदी लिबरल उम्मीदवार को 26 प्रतिशत मत मिले और कंजरवेटिव उम्मीदवार को 22 प्रतिशत से ही संतोष करना पड़ा। सिंह इस जीत से बहुत अधिक प्रसन्न है, उन्होंने आशा जताते हुए कहा कि यद्यपि मेरे सामने अभी बहुत सी बड़ी चुनौतियां शेष हैं, परंतु यह जीत उन चुनौतियों को पार करने की पहली सीढ़ी हैं जिसे मैनें और मेरे समर्थकों ने सफलता के साथ पार कर ली हैं। हमने इतिहास बनाया हैं, जिस जीत पर किसी को भी आशा तक नहीं थी वही प्राप्त की हैं। लोगों ने मुझ पर विश्वास जताया इससे यह सिद्ध होता हैं कि कहीं न कहीं उन्हें वर्तमान सत्ताधारी सरकार पर संदेह हैं और वे भी बदलाव चाहते हैं। अब यदि कोई बच्चा कहता हैं कि उसे बड़े होकर प्रधानमंत्री बनना हैं तो हम कह सकते हैं अवश्य, क्योंकि मेहनत से हर लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता हैं। लॉयर रेचल बेंडायन ने आरोप लगाते हुए कहा कि लिबरलस के लगभग 40 प्रतिशत मतों में कमी पिछले दिनों हुई एसएनसी-लेवलीन घटना के कारण हुई, लोगों के मन में सरकार के प्रति भ्रष्टाचार का संदेश भर गया, जिससे इसका लाभ एनडीपी को मिला और जगमीत सिंह यह उपचुनाव जीत गए। वहीं दूसरी ओर आउटरीमोंट में लंबे समय के पश्चात लिबरल सत्ता में आई, जहां केवल मलकेयर की सत्ता का प्रभाव छाया हुआ था। जगमीत सिंह अपनी आगामी योजना के अंतर्गत अगले सप्ताह क्यूबेक जाएंगे और लोगों को पाईपलाईन संबंधी योजना के लिए रजामंद करने का प्रयास भी करेंगे।
यॉर्क-सीमोक में 53 प्रतिशत मतों के साथ टोरीज ने अपना वर्चस्व साबित किया, जबकि लिबरल उम्मीदवार को केवल 30 प्रतिशत मतों से ही संतोष करना पड़ा, सबसे आश्चर्य जनक बात यह हुई कि जहां एक ओर एनडीपी भारी मतों से जीती वहीं दूसरी ओर इस प्रांत में उसे केवल 2 प्रतिशत मतों की शर्मिंन्दगी झेलनी पड़ी। इससे यह साबित हो रहा हैं कि उपचुनावों में पार्टी का प्रभाव न होकर उम्मीदवारों की प्रतिष्ठा साबित हुई।
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