सावन में शिव का पूजन

हिंदू पंचांग के बारह मासों में सावन भगवान भोलेनाथ को सर्वाधिक प्रिय है। इसीलिए यदि संभव हो तो शिव-भक्तों को सावन के सोमवार का व्रत अवश्य रखना चाहिए। प्रात:काल स्नान के बाद गाय के दूध, दही, घी, शहद अथवा स्वछ जल से शिवलिंग का अभिषेक करें, बेलपत्र चढ़ाएं और चंदन लगाएं। आक के फूल, धतूरा, धूप-दीप आदि अर्पित करके किसी शिव स्रोत का पाठ एवं ॐ नम: शिवाय मंत्र का जप करें। दिनभर उपवास रखें, सूर्यास्त के बाद प्रदोषकाल में पुन:शिव जी की अर्चना करने के बाद सात्विक भोजन ग्रहण करें।
उजैन में सावन के प्रत्येक सोमवार को मृत्युलोक के अधिपति श्रीमहाकालेश्वर की सवारी निकलती है। वहां सावन की यह छटा उलर भारतीय पंचांगों में दिए गए श्रावण के कृष्णपक्ष से भाद्रपद के कृष्णपक्ष तक छाई रहती है। महीने के आखिरी सोमवार को श्रीमहाकाल की सवारी के दर्शनार्थ देश-विदेश से असंख्य श्रद्धालु उजैन पहुंचते हैं।
सर्प भगवान शंकर के आभूषण हैं। अत: नागपंचमी का पर्व भी इसी मास की शुक्लपक्ष पंचमी को मनाया जाता है। इस दिन रुद्रावतार श्रीहनुमान के ध्वजारोहण और कुश्ती-दंगल की भी परंपरा है, जो इसे आध्यात्मिक स्वास्थ्य दिवस बना देती है।

शक्ति की आराधना
जिस सावन मास में शिव जी का सर्वत्र पूजन हो, उसमें उनकी शक्ति शिवा की उपेक्षा कैसे की जा सकती है? सावन के प्रत्येक मंगलवार को मंगलागौरी की विशेष पूजा होती है। देवी पार्वती के इस अति विशिष्ट रूप का श्रीविग्रह वाराणसी के पंचगंगा घाट पर विद्यमान है। मंगलागौरी का दर्शन-पूजन करने के लिए सावन के प्रत्येक मंगलवार को यहां बहुत बड़ी संख्या में स्त्रियां आती हैं। पुराणों के अनुसार मंगलागौरी की परिक्रमा करने से संपूर्ण पृथ्वी की प्रदक्षिणा का पुण्यफल मिलता है। इनकी उपासना से अविवाहित कन्याओं के मंगली-दोष का भी शमन होता है।
काशी के दुर्गाकुंड पर विराजमान भगवती दुर्गा का विशेष मेला भी सावन में ही लगता है।
पूर्वी उलरप्रदेश के गांवों में श्रावण मास के कृष्णपक्ष की तृतीया को कजली तीज मनाने की परंपरा है। इसी लोकोत्सव से लोक गायन की एक प्रसिद्ध शैली का जन्म हुआ, जो कजरी के नाम से विख्यात हो गई। राजस्थान सहित उलर भारत के अधिकांश क्षेत्रों में सावन के शुक्ल पक्ष की तृतीया हरियाली तीज के नाम से विख्यात है। इस अवसर पर नवविवाहिताएं मायके जाती हैं। इस दिन मेहंदी रचाना और हरी चूडिय़ां पहनकर झूला झूलना अति शुभ माना जाता है। इस दिन विवाहिताओं को मायके से विश्ेाष उपहार भेजा जाता है, जिसे सिंघारा कहा जाता है। इस दिन विवाहिताएं जगदंबा से अखंड सुहाग का आशीष मांगती हैं। ऐसी मान्यता है कि विरह की अग्नि में तपकर गौरी शिव जी से इसी दिन मिली थीं।

 

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