वैंकुअर बायोटेक कंपनी ने दावा किया कोविड-19 उपचार के लिए बनाई एंटीबायोटिक
वैंकुअर। कोविड-19 से लड़ने के लिए जहां पूरी दुनिया में कोशिशें चल रही हैं, प्रत्येक देश इस महामारी से जल्द से जल्द छुटकारा चाहता हैं। इसी प्रयासों में वैनकुअर से एक राहत भरी खबर आई हैं कि वहां की प्रख्यात बायोटेक कंपनी ने इस महामारी के उपचार हेतु एंटीबायोटिक बना ली हैं। एबकैलरा बायोलोजिक्स नामक कंपनी ने यह दावा पेश किया हैं, संस्था के सीईओ कार्ल हैनसन ने बताया कि अब हम जल्द ही कोविड-19 से बचने के लिए वैक्सीन बना सकेंगे। उन्होंने बताया कि एंटीबायोटिक के निर्माण से जल्द ही इस वायरस के बचाव हेतु वैक्सीन बनाई जाएंगी जिससे इससे संक्रमित मरीजों को जल्द ही स्वास्थ्य लाभ मिल सकेगा और भविष्य में भी उन्हें इस वायरस के दुष्प्रभावों से बचाया जा सकेगा। ज्ञात हो कि कोरोना वायरस की वैक्सीन को लेकर पूरी दुनिया में जो कवायद चल रही है उसमें यह एक बहुत बड़ी कामयाबी सिद्ध हो सकती हैं यदि इसके परिणाम सफल रहें। वैक्सीन भी तैयार की जा सकती है, उन्होंने आगे कहा कि जिस तरह से प्लाज्मा एंटीबॉडी संक्रमित व्यक्ति में मौजूद वायरस से लड़ता है, उसी तरह एबकैलरा में तैयार किया गया एंटीबॉडी भी किसी वायरस या बैक्टीरिया को खत्म करने में अहम भूमिका निभाता है।
दुनिया के अन्य देशों ने भी प्रस्तुत किए दावें :
इजराइल के आईआईबीआर के मुताबिक प्रयोगशाला में तैयार एंटीबॉडी के जरिये किसी वायरस से लड़ने वाली दवा या वैक्सीन भी तैयार की जा सकती है। ये लैब इजरायल के प्रधानमंत्री के अधीन काम करता है। इस संस्थान ने पहले भी जैव-रासायनिक हथियारों के साथ घातक तकनीक भी विकसित की है। विश्व के 50 से ज्यादा नामचीन वैज्ञानिक इस संस्थान में काम करते हैं।
वहीं दूसरी तरफ नीदरलैंड के वैज्ञानिकों ने जो एंटीबॉडी बनाया है उसको उट्रेच यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता बर्नेड जान बॉश की टीम द्वारा तैयार किया गया है। इस कृत्रिम एंटीबॉडी ने कोशिका में मौजूद वायरस को निष्क्रिय कर दिखाया। नीदरलैंड का भी दावा है कि इस सफल कदम से कोरोना की वैक्सीन बनाने में सफलता मिल सकती है। नीदरलैंड के वैज्ञानिकों का ये शोध जर्नल नेचर कम्यूनिकेशंस में प्रकाशित भी हुआ है। इसके अनुसार, 47 डी 11 नाम के एंटीबॉडी ने कोशिका में प्रोटीन का विस्फोट करने वाले स्पाइक प्रोटीन को निशाना बनाया। सार्स वायरस को निष्क्रिय करने के परीक्षण में भी यह खरा उतरा है।
वैक्सीन तैयार करने के चार चरण :
कोरोना वैक्सीन की ही यदि बात करें तो उसमें कुछ देश पहले चरण से आगे निकल चुके हैं। ये पहला चरण वैक्सीन को शोध के बाद तैयार करने का है। दूसरे चरण में इसकी टेस्टिंग होती है और तीसरे चरण में इसकी मंजूरी होती है और चैथे चरण में इसका मरीजों पर प्रयोग शुरू होता है। ये चारों ही चरण बेहद खास होते हैं। वर्तमान की बात करें तो पूरी दुनिया में वैक्सीन बनाने के 150 से अधिक प्रोजेक्ट चल रहे हैं। इनमें से करीब पांच से अधिक देश वैक्घ्सीन बनाने के दूसरे चरण में पहुंच चुके हैं। ऐसा करने वालों में अमेरिका भी एक है। अमेरिकी सरकार के शीर्ष सलाहकार डॉ. एंथनी फॉकी के अनुसार, अगर सब कुछ ठीक रहा तो वैक्सीन 12 से 18 माह में बाजार में आ सकती है।
शोध हेतु प्रधानमंत्री जस्टीन ट्रुडो ने जारी किया था अतिरिक्त फंड :
सरकारी सूत्रों के अनुसार यह फंड तीन घटकों में विभाजित है। 115 मिलियन कैनेडाई डॉलर (लगभग 81 मिलियन अमेरिकी डॉलर) अस्पतालों और विश्वविद्यालयों में विकसित किए जा रहे टीकों और उपचारों पर शोध के लिए, कैनेडा में नैदानिक परीक्षण के लिए 662 मिलियन कैनेडाई डॉलर (अमेरिकी 472 मिलियन डॉलर) और कोविड-19 के लिए राष्ट्रीय परीक्षण और मॉडलिंग का विस्तार करने के लिए 350 मिलियन कैनेडाई डॉलर (अमेरिकी 248 मिलियन डॉलर) अतिरिक्त धनराशि ट्रुडो सरकार द्वारा मार्शल को दिए गए पिछले प्रयासों का समर्थन करने के लिए है। मार्च के मध्य में, कैनेडा चिकित्सा अनुसंधान के लिए 275 मिलियन कनाडाई डॉलर (लगभग 194 मिलियन अमेरिकी डॉलर) प्रदान किए। इसने नई दवाओं और वैक्सीन पर काम करने वाली विशिष्ट कंपनियों और शोध संस्थानों को 192 मिलियन कनाडाई डॉलर (लगभग अमेरिकी 136 मिलियन) आवंटित करने के लिए एक नए रणनीतिक नवाचार फंड के निर्माण की घोषणा की। सम्मेलन में, ट्रुडो ने एक नए कोविड के निर्माण की भी घोषणा की -19 इम्युनिटी टास्क फोर्स यह निर्धारित करने के लिए कि किसी को पहले से ही वायरस से अवगत कराया गया है, यह निर्धारित करने के लिए सीरोलॉजी परीक्षण पर ध्यान केंद्रित किया गया है। कोविड-19 इम्युनिटी टास्क फोर्स में कैनेडा के शीर्ष डॉक्टरों की एक श्रृंखला शामिल होगी और उपन्यास को प्रतिरक्षा को ट्रैक करने और समझने के लिए रक्त परीक्षण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
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