सरकार को उल्टा पड़ा कमलनाथ का दांव
नई दिल्ली, तेलंगाना के मुद्दे पर लगातार बाधित लोकसभा में संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ के एक फैसले ने संकट खड़ा कर दिया। कमलनाथ ने रोजाना सदन में हंगामा कर रहे पृथक तेलंगाना विरोधी 11 सांसदों के निलंबन की सिफारिश कर दी। इसके बाद हालात बिल्कुल ही बिगड़ गए। सरकार के फैसले से उत्तेजित तेलंगाना विरोधी तेदेपा और कांग्रेस सांसदों ने आसन के साथ बदसुलूकी तक कर डाली। वहीं, पूरा विपक्ष फैसले के खिलाफ एकजुट हो गया और कांग्रेस अकेली पड़ गई।
निलंबन के घेरे में आए सदस्यों ने अध्यक्ष की मेज तक पहुंचकर माइक खींचने की कोशिश की। लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को तत्काल कार्यवाही स्थगित कर मामले को संभालना पड़ा। बाद में लोकसभा अध्यक्ष ने घटना को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि सबकुछ संसदीय कार्यमंत्री पर निर्भर करता है। अगर वह निलंबन का प्रस्ताव लाएंगे तो पीठ को फैसला करना ही पड़ेगा।
तेलंगाना की राजनीति लोकसभा पर शुरू से ही भारी पड़ रही है। मानसून सत्र की शुरुआत से ही लोकसभा में सीमांध्र की पैरवी कर रहे तेदेपा और कांग्रेस के कुछ सदस्यों को अब तक सरकार विश्वास में नहीं ले पाई है। रोजाना हंगामे से आजिज कमलनाथ ने खाद्य सुरक्षा विधेयक पारित कराने के दबाव में तेदेपा के चार और कांग्रेस के सात सांसदों को मानसून सत्र के बचे हुए दिन तक निलंबित करने का प्रस्ताव दिया। इसके खिलाफ भाजपा समेत पूरा विपक्ष सांसदों के साथ खड़ा हो गया।
नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने कमलनाथ के प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि इस स्थिति के लिए कांग्रेस जिम्मेदार है। आंध्र प्रदेश का बंटवारा इस तरह किया गया कि राज्य में कटुता दुश्मनी तक पहुंच गई है। इसी दौरान एक तेदेपा सदस्य ने कोड़ा निकालकर अपनी पीठ पर मारा, तो दूसरे सांसद ने अध्यक्ष का माइक छीनने की कोशिश की। देखादेखी कांग्रेस के सांसद ने भी माइक खींचने की कोशिश की।
हंगामे के बीच कमलनाथ के प्रस्ताव पर मीरा कुमार ने सदन का मत लेने की कोशिश की, लेकिन कांग्रेस छोड़ कोई भी इससे सहमत नहीं था। कार्यवाही स्थगित कर अध्यक्ष ने नेताओं की बैठक में मुद्दे को सुलझाने की कोशिश की, लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया।
दरअसल, कमलनाथ के निलंबन प्रस्ताव में भी कामकाज चलाने से ज्यादा सियासी उद्देश्य था। विपक्ष के मुताबिक भाजपा जताना चाहती है कि वह तेलंगाना के पक्ष में नहीं है। इसलिए विरोध कर रहे सदस्यों के निलंबन का साथ नहीं दे रही है।
इसे भांपते हुए सुषमा स्वराज ने नहले पर दहला मारा और कहा कि निलंबन के लिए जोर डाला जाएगा तो भाजपा वाकआउट करेगी। कांग्रेस चाहती तो प्रस्ताव के लिए दबाव बना सकती थी, लेकिन उस स्थिति में सरकार को मार्शल का उपयोग करना पड़ सकता था, जिसके लिए कोई भी दल तैयार नहीं था। वैसे भी कमलनाथ की कार्यशैली से विपक्ष पहले ही चिढ़ा हुआ है। भाजपा ने तो संसदीय कार्यमंत्री की बैठकों का बहिष्कार करने का फैसला ले लिया था।
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