लुढक़ते रुपये ने बढ़ा दिए विदेश में शिक्षा के भाव
टोरंटो – लुढक़ते रुपये से विदेश में उच शिक्षा हासिल करना भी महंगा हो गया है। इससे अमेरिका और ब्रिटेन में शिक्षा के प्रति आकर्षण घटा है और जर्मनी सस्ता विकल्प बनकर उभरा है। अहमदाबाद की श्रेया माथुर का विदेश में उच शिक्षा लेने का उत्साह ठंडा पड़ गया है। उन्होंने कैनेडा के टोरंटो स्थित सेनेका कॉलेज में मानव संसाधन (एचआर) में एमबीए में प्रवेश लिया था। उसके प्रत्येक सत्र की फीस 6,800 डॉलर से यादा है, लेकिन रुपये में गिरावट से उसे अगले सत्रों में उनकी फीस 2-3 लाख रुपये और बढ़ जाएगी।
पिछले एक साल में रुपया करीब 14 फीसदी गिर चुका है। इसका मतलब है कि अगर आप अगस्त 2012 में अमेरिका के हार्वर्ड बिजऩेस स्कूल में एमबीए में दाखिला लेते तो आपको 1 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते। दूसरी ओर अगर आप इस साल नामांकन कराएंगे तो आपको 1.17 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे।
श्रेया ने अपने पहले सत्र की फीस जुलाई में दी थी। उस समय डॉलर के मुकाबले रुपया 58 के स्तर पर था। अब उन्हें किताबों के खर्च के अलावा फीस में 4 लाख रुपये यादा देने पड़े। हालांकि अक्टूबर में उन्हें ट्यूशन शुल्क और किताबों पर 1 लाख रुपये खर्च करने होंगे जबकि 1,100 डॉलर प्रति माह का हॉस्टल शुल्क अलग है।
श्रेया कहती है, अगर मैंने पिछले साल प्रवेश लिया होता तो मुझे पूरे एमबीए के लिए 5 से 8 रुपये कम खर्च करने पड़ते। विदेश में पढ़ाई की योजना बना रहे मेरे बहुत से दोस्तों ने बाहर जाने का विचार छोड़ दिया है। मेरे लिए यह इसलिए संभव है कि नए नियमों के तहत हमें सत्रों की फीस किस्तों में देनी है।Ó
वैश्विक स्तर की परीक्षाओं जैसे जीआरई, जीमैट, आईईएलटीएस और टेस्ट ऑफ टीओईएफएल के लिए छात्रों को प्रशिक्षण देने वाले कोचिंग संस्थानों का कहना है कि इसका सबसे यादा असर मध्यमवर्गीय परिवारों के छात्रों पर पड़ेगा। दिल्ली की एक वैश्विक शिक्षण कंपनी द चोपड़ाज के चैयरमैन नवीन चोपड़ा कहते हैं, भारत से बाहर शिक्षा के लिए जाने वाले यादातर छात्र मध्यम वर्ग के होते हैं। इस पर असर न केवल गिरते रुपये बल्कि कुछ नीतिगत बदलावों का भी हो रहा है। उदाहरण के लिए सरकार ने भारतीय करदाताओं के विदेशों में पैसे भेजने की वार्षिक सीमा को 2,00,000 डॉलर से घटाकर महज 75,000 डॉलर सालाना कर दिया है।Ó
चोपड़ा के अनुसार डॉलर, पाउंड और यूरो के मुकाबले रुपये में गिरावट से विदेश में शिक्षा के लिए जाने वाले छात्रों की संख्या 40 फीसदी तक घट सकती है। अनुमान के अनुसार भारत से हर साल 1.5 लाख से 2 लाख छात्र अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कैनेडा और जर्मनी जाते हैं।
मुंबई स्थित जीबी एजुकेशन के तकनीकी निदेशक विनायक कामत कहते हैं, रुपये में भारी गिरावट पिछले कुछ दिनों में आई है। अभी छात्र चिंतित और इंतजार कर रहे हैं।Ó उन्होंने कहा कि ब्रिटेन जाने वाले छात्रों पर यादा असर पड़ेगा, क्योंकि डॉलर की तुलना में पाउंड के मुकाबले रुपया यादा गिरा है।
दूसरा असर यह हो सकता है कि छात्र अन्य देशों का रुख करें। चोपड़ा कहते हैं, इस स्थिति के बावजूद जो पढ़ाई के लिए विदेश जाना चाहते हैं, वे दूसरे देशों का विकल्प अपना रहे हैं। इसका मतलब है कि छात्र सस्ती जगह चुन पैसा बचा रहे हैं।Ó उन्होंने कहा कि बहुत से छात्र जर्मनी का विकल्प अपना रहे हैं। एचएसबीसी द्वारा पिछले सप्ताह जारी अध्ययन में कहा गया है कि विदेशी छात्रों की औसत लागत 38,000 डॉलर प्रतिवर्ष से यादा है।
भारतीय छात्रों के लिए ऑस्ट्रेलिया सबसे महंगा देश हो सकता है। विदेशी छात्रों के लिए अमेरिका दूसरा सबसे महंगा और ब्रिटेन तीसरा महंगा देश है। ब्रिटेन में औसत सालाना फीस 19,291 डॉलर और रहने-सहने का खर्च 10,177 डॉलर है। संयुक्त अरब अमीरात, सिंगापुर और हॉन्ग कॉन्ग में विदेशी छात्रों का सालाना खर्च 20,000 डॉलर से यादा है। एचएसबीसी के एक अध्ययन के मुताबिक जर्मनी में शिक्षा की लागत कम है। जर्मनी में विदेशी छात्रों की पढ़ाई का औसत खर्च 635 डॉलर और रहने-सहने का खर्च 5,650 डॉलर है। इस तरह वहां कुल वार्षिक लागत 6,285 डॉलर बैठती है, जो ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई की लागत का 1/6 ही है।
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