कमजोर रुपये से कैनेडा भेजने वाले वीजा सलाहकारों का धंधा मंदा
पंजाब के फगवाड़ा में रहने वाली 21 साल की दलजीत कौर किसी ब्रिटिश विश्वविद्यालय में दाखिले के लिए आव्रजन और छात्र वीजा लेना चाहती थीं, जिसके लिए उन्होंने रकम भी जुटा ली थी। लेकिन अब डॉलर महंगा होने पर उनका खर्च बढ़ जाएगा, यही सोचकर उन्होंने अपना इरादा टाल दिया।
दलजीत ने कहा, विदेशों में पार्ट टाइम काम करने से कुछ कमाई हो जाती है। रुपया लुढक़ने से वह कमाई भारत के लिहाज से यादा होगी, लेकिन अनिश्चितता इतनी है कि मेरा भरोसा डगमगा चुका है।’ उनकी तरह सैकड़ों-हजारों छात्र डॉलर महंगा होने के कारण विदेश में पढ़ाई का मंसूबा टाल रहे हैं। इसकी सीधी चोट वीजा आदि दिलाने में मदद करने वाले आव्रजन सलाहकारों या वीजा एजेंसियों पर पड़ रही है।
चंडीगढ़ के कैन एशिया इमिग्रेशन कंसल्टेंट्स के निदेशक और एसोसिएशन ऑफ प्रोफेशनल इमिग्रेशन ऐंड एजुकेशन कंसल्टेंट्स ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रूपिंदर बाठ ने बताया कि हर साल करीब 7,000 छात्र पढऩे कैनेडा जाते हैं। लेकिन इस वक्त उन्हें 1 कैनेडा ई डॉलर के एवज में 14 रुपये यादा खर्च करने पड़ेंगे, जो उनके लिए मुश्किल है। इसके अलावा विदेश जाने वालों को 12,250 डॉलर आव्रजन सेटलमेंट फंड के तौर पर अलग रखने पड़ते हैं, जो रुपये के लिहाज से यादा रकम हो गई है।
चंडीगढ़ में ही वीजा सलाहकार फर्म सनराइज इंटरनैशनल के निदेश करण प्रताप सिंह ने बताया कि प्रोफेशनल एसोसिएशन ऑफ फॉरेन सर्विसेज ऑफिसर्स की हड़ताल के कारण कैनेडा के लिए वीजा देर से मिल रहा है। रुपये में गिरावट आने से परेशानी और बढ़ गई है। वडोदरा की फर्म काना इंटरनैशनल की निदेशक सोनल शाह ने बताया कि मंदी में अमेरिका जाने वाले छात्रों की संख्या 70 फीसदी घट गई थी। हालांकि इस साल की शुरुआत से हालात सुधरे थे, लेकिन रुपये की गिरती कीमत सब कुछ चौपट कर सकती है।
दरअसल पंजाब से बड़ी तादाद में लोग विदेश में जाकर बस गए हैं। पिछले दशक तक यहां से कबूतरबाजी (अवैध तरीके) के जरिये विदेश जाने वालों की संख्या काफी थी। लेकिन वीजा एजेंटों के बढऩे से अब यादातर लोग वैध तरीके से ही वहां जाते हैं। बाठ ने बताया कि जो लोग यादा रकम खर्च नहीं कर सकते, वे सिंगापुर जैसे सस्ते देशों में जा रहे हैं।
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