जो मैंने झेला, क्या पैसे से उसकी भरपाई होगी

टोरंटो , कनाडा में साल 1940 और 1950 के बीच करीब तीन हजार अनाथ बचे मानसिक अस्पताल भेज दिए गए। वे ननों की देखरेख में थे। मानसिक रोगी नहीं होने के बावजूद उन्हें जबरन अस्पताल भेजा गया।
क्योंकि अनाथ बचों की देखभाल के लिए ननों को सरकार से पैसे मिले थे। सरकार ने इन रोगियों को क्लिक करें मानसिक रोगी साबित कर अस्पताल में रखने के लिए उन्हें और यादा पैसे दिए।
इस साल के शुरु में कनाडा के ड्यूप्लेसिस अनाथालय ने क्यूबैक के कैथोलिक चर्च से माफी की मांग की। कई लोगों ने इस अनाथालय पर बचों के शारीरिक और क्लिक करें यौन शोषण का आरोप लगाया है।
क्लेरीना डग उन हजारों अनाथ बचों में से एक हैं जिन्हें जबरन मानसिक अस्पताल भेज दिया गया था। उन्होंने वहां एक दो नहीं, बल्कि छह साल बिताए। अब वे 76 साल की हैं। बीबीसी आउटलुक से बात करते हुए क्लेरीना की आवाज में उन छह सालों की यातना और दर्द छलक उठा।
वे मुझसे दिन भर सफाई करवातीं। एक ही जगह को बार-बार साफ करने को कहा जाता। कभी अजीबोगरीब चीजें खाने को दी जातीं, इससे मेरी तबियत बिगड़ जाती थी। मैं उसे कूड़े में फेंक आती तो, मुझे फिर वही उठाकर खाने को कहा जाता। मैं चुपचाप सब सहती थी।
क्लेरीना बताती हैं कि वे इथिया गांव में अपने माता पिता के साथ रहती थी। तब उनकी उम्र नौ साल थी। उसी साल उनकी मां की तपेदिक से मौत हो गई। डॉक्टर और पादरी ने सलाह दी कि उन्हें और उनकी बहन को अनाथालय भेज देना चाहिए।
वे बताती हैं, मेरा परिवार बहुत गरीब था। पिता जंगलों में काम करते थे। वे पढऩा लिखना नहीं जानते थे। जब पादरी ने कहा कि अनाथालय में हमें अछी शिक्षा भी दी जाएगी तो पिता तैयार हो गए।
जब क्लेरीना अस्पताल पहुंचीं तो क्लिक करें बहुत रो रही थीं। वहां की नन ने उन्हें डांट कर चुपचाप कमरे में चले जाने को कहा।
क्लेरीना बताती हैं, नन मेरे लगातार रोने से परेशान थी। उन्होंने बाथरुम ले जाकर मेरा सिर बर्फ जैसे ठंडे पानी में डूबो दिया। फिर निकाला, फिर डूबोया। मुझे वहां कोई शिक्षा नहीं मिली। बस यातना ही मिली।
क्लेरीना का आरोप है कि वे और दूसरे बचे मानसिक आरोग्य चिकत्सालय में शारीरिक हिंसा के शिकार हुए।
क्लेरीना बताती हैं कि अनाथालय की ननों ने उनके और उनकी बहन के साथ बेहद अमानवीय व्यवहार किया।
इस बारे में उन्होंने बताया, वे मुझसे दिन भर सफाई करवातीं। एक ही जगह को बार-बार साफ करने को कहा जाता। कभी अजीबोगरीब चीजें खाने को दी जातीं, इससे मेरी तबीयत बिगड़ जाती थी। मैं उसे कूड़े में फेंक आती तो, मुझे फिर वही उठाकर खाने को कहा जाता। मैं चुपचाप सब सहती थी।
फिर एक दिन उन्हें और उनकी बहन को एक बस में बिठाया गया और कहा गया कि उन्हें उनके गांव घूमाने ले जाया जा रहा है।
वे बताती हैं, हमारी बस एक लंबी-चौड़ी इमारत के आगे रुकी। बाहर बहुत बड़ा लोहे का गेट था। हम अंदर गए। वह मानसिक आरोग्य चिकित्सालय था।
वहां भी उनके साथ बेहद क्रूर बर्ताव किया गया। कभी उनका सिर ठंडे पानी में डूबो दिया जाता तो कभी उन्हें बिस्तर से रस्सियों से बांध दिया।
क्लेरीना बताती हैं, उस अस्पताल में रखने के पीछे उनका ये कहना था कि मैं मानसिक रूप से बीमार हूं। उन्होंने ये बात इस कदर मेरे भीतर बैठा दी थी कि मुझे आज भी लगता है कि मैं बीमार हूं। आज मैं 76 साल की हो चुकी हूं। और आज भी मेरे भीतर से वो डर नहीं निकला है।
मुझे बार बार कहा जाता था कि मैं मानसिक रोगी हूं। ये बात मेरे दिमाग में इस कदर बैठा गई कि आज भी लगता है कि मैं बीमार हूं। अभी मैं 76 साल की हूं। मगर आज भी डर लगता है कि कोई आएगा और मेरा सिर बर्फीले पानी की बाल्टी में डूबो देगा।
क्लेरीना डग
वे मानसिक रूप से बीमार थी, या नहीं, इसका वहां कोई भी टेस्ट नहीं किया गया। नन ने वहां के अधिकारियों को बता रखा था कि उनका पूरा परिवार, उनके दादा, पिता सभी मानसिक रोगी हैं।
और इस तरह के माहौल में उन्होंने छह साल से भी यादा का वक्त गुजार दिया।
इसी बीच एक बार उनकी बहन को ट्रेन से अस्पताल से बाहर जाने का मौका मिला। वे बाथरुम में छिप गई। और बाद में भागने में सफल हो गई।
बहन वहां से भाग निकली
क्लेरीना की बहन ने गांव में जाकर पिता और भाई को सबकुछ बताया। तब सभी को ये बात पता चली।
क्लेरीना वहां से आकर आंटी के पास रहने लगी। तब वे 17-18 साल की थी। उन्होंने इस बारे में और किसी को कुछ नहीं बताया।
कनाडा
ननों ने आर्थिक प्रलोभन के कारण हजारों अनाथ बचों को मानसिक आरोग्य चिकित्सालय भेज दिया।
टेलीविजन पर ये बातें साल 1992 में तब सामने आईं जब कई अनाथ बचों ने सामने आकर अपनी कहानी कही।
फिर सबको पता चला कि ननों ने अपने आर्थिक प्रलोभन के कारण अनाथ बचों को मानसिक अस्पताल भेजा।
मानसिक आरोग्य अस्पताल में रखने के लिए उन्हें पैसे मिल रहे थे। तब क्लेरीना ने सरकार से, अनाथालय से मुआवजे की मांग की।
क्लेरीना ने बताया, सरकार ने मुझे 15 हजार डॉलर दिए। मगर उन्होंने ये नहीं बताया कि ये पैसे क्यों दिए जा रहे हैं। मुझसे कागज पर साइन भी करवाया गया ताकि बाद में हम उन पर कोई केस ना कर दें।
वे कहती हैं, मैंने जो यंत्रणा भोगी, दर्द सहे, ये पैसे उसकी भरपाई नहीं कर सकते। यह तो सडक़ किनारे किसी भिखारी को पैसे देने के बराबर है।

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