Toronto News : घातक भूकंप के पीडि़तों की मदद के लिए आगे आएं कैनेडा में रह रहे अफगानी नागरिक
Afghan citizens living in Canada come forward to help the victims of deadly earthquake
Toronto News : टोरंटो। कैनेडा में रह रहे अफगानी नागरिक एक बार फिर से अपने देश में आएं भीषण भूकंप के समाचार से शोक-संतप्त हो गए हैं। रिक्टर स्केल पर इस भूकंप की तीव्रता 6.3 मापी गई हैं। अफगानी मीडिया के अनुसार कई गांव तबाह हो गए हैं। भूकंप में हेरात शहर से लगभग 40 किमी. दूर कई गांवों को तबाह कर दिया हैं, कई इमारतें क्षतिग्रस्त हो गई हैं और लोग अभी भी मलबे के ढेर में फंसे हुए हैं। लोगों द्वारा कम से कम तीन शक्तिशाली झटके महसूस किए जाने की पुष्टि की गई हैं। जिंदा बचे लोगों ने खौफनाक मंजर का वर्णन किया जब कार्यालय की इमारतें पहले हिलीं और फिर उनके चारों ओर ढह गई।
अफगानिस्तान के सूचना एवं संस्कृति मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल वाहिद रेयान ने कहा कि हेरात में भूकंप से मरने वालों की संख्या मूल रुप से बताई गई संख्या से कहीं अधिक हैं। उन्होंने तत्काल मदद की अपील करते हुए कहा कि देश के लगभग छ: गांव नष्ट हो गए हैं ओर सैकड़ों नागरिकों के मलबे के नीचे दबे होने की संभावना हैं। एक अपडेट के अनुसार 465 घर नष्ट हो गए हैं और 135 अन्य क्षतिग्रस्त हो गए हैं। सूत्रों के अनुसार यह भूकंप कैनेडियन समयानुसार प्रात: 11 बजे आया, जिसने सैकड़ां जिंदगियां तबाह कर दी।
कैनेडा के कालग्रे में रह रहे 35 अफगानी नागरिकों के एक ग्रुप ने इस तबाही पर अपनी हर संभव मदद देने की बात को स्वीकारा हैं, उनके अनुसार उनके साथ कई अन्य संगठन भी इस आपदा में अफगानी नागरिकों की मदद के लिए तत्पर हैं। सभी से इस आपदा के समय में पीडि़त अफगानियों के लिए अधिक से अधिक धन का दान करने की बात को कहा जा रहा हैं, जिससे अधिकतम राशि का अनुदान अफगानिस्तान को दिया जा सके और पीडि़तों की हर संभव मदद की जा सके।
मैमोरियल यूनिवर्सिटी के सहायक स्वास्थ्य प्रोफेसर मायसम नजफीजादा ने मीडिया को बताया कि उसका एक मित्र जो हेरात में रहता हैं, उसका भी भूकंप के बाद कुछ पता नहीं चल पा रहा, जिस कारण से उसे बहुत अधिक चिंता हो रही हैं और वह चाहता है कि इस शोध कार्य में वह भी अफगानी सरकार की मदद कर सके, इसलिए उसने इस आयोजन में भाग लेने की स्वीकृति इसे सुनते ही दे दी। उन्होंने यह भी माना कि यह पीडि़त अफगानियों के लिए बहुत ही कठिनाई का दौर हैं, जहां एक ओर उनके काम-धंधे सभी चैपट हो गए वहीं दूसरी ओर उन्हें खुले में परिवार के साथ रात बीतानेे के लिए मजबूर होना पड़ रहा हैं और उन्हें यह भी पता नहीं कि इस ढेर के नीेचे कई लाशें भी दबी हुई हैं। लोगों में इस बात का भी बहुत अधिक रोष हैं कि अभी तक उतनी सरकारी मदद नहीं मिली हैं जितनी इस समय तक पहुंच जानी चाहिए।
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