बार-बार भूलने की आदत से बचाएगा यह उपाय

टोरंटो, आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद के निज़ाम अस्पताल में हुए एक अध्ययन के अनुसार दो भाषाएँ बोलने वाले लोगों पर भूलने की बीमारी का असर उनके बनिस्बत देर से होता है, जो सिफऱ् एक भाषा बोलते हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ एडिनबरा (ब्रिटेन) और हैदराबाद के निज़ाम इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ के वैज्ञानिकों ने दिमाग़ी बीमारी या डिमेंशिया से परेशान 600 से ज़्यादा लोगों का अध्ययन करके यह नतीजा निकाला है।
इस अध्ययन में शामिल डॉक्टर सुवर्णा अल्लादि ने बीबीसी हिंदी सेवा को बताया कि दो भाषा बोलने वाले निरक्षर आदमी को भी यह फ़ायदा मिलता है और इसका शिक्षा से कोई संबंध नहीं है।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ एडिनबरा के टॉमस बाक के साथ सुवर्णा और उनके सहयोगियों ने जब रोगियों का अध्ययन किया तो पाया कि उनमें से दो भाषाएँ बोलने वालों को डिमेंशिया की बीमारी चार से पाँच साल बाद असर करती हैं जबकि एक भाषी लोगों पर अपेक्षाकृत कम उम्र में ही इसका प्रभाव नजऱ आने लगता है।
यह द्विभाषी लोगों पर डेमेंशिया का असर समझाने वाला सबसे बड़ा अध्ययन है। इसमें रोगियों की शिक्षा, लिंग, व्यवसाय, देश और निवास स्थान जैसी बातों पर भी ग़ौर किया गया।

निज़ाम इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस हैदराबाद में न्यूरोसाइंटिस्ट डॉ. सुवर्णा अल्लादि कहती हैं, पहला अध्ययन कैनेडा के टोरंटो शहर में हुआ, जहां ढेर सारे द्विभाषी लोग रहते हैं। जो आसपास के देशों से वहां आए हैं और अपनी मातृभाषा के अलावा फ्रेंच या अंग्रेज़ी बोलते हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि द्विभाषी लोग एक भाषा से दूसरी भाषा में सोचने और बोलने का काम आसानी से कर पाते हैं और इससे उनके दिमाग़ की ख़ासी कसरत हो जाती है, जो उन्हें भूलने की बीमारी से लंबे समय तक बचाकर रखती है।
दिमाग की यह ट्रेनिंग किसी कृत्रिम ट्रेनिंग प्रोग्राम की तुलना में यादा असरदार होती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके बावजूद द्विभाषी तकनीकों पर अध्ययन इसलिए जटिल है क्योंकि अक्सर द्विभाषी लोगों की जातीय और सांस्कृतिक पहचान अलग होती है।
हैदराबाद जैसी जगहों पर आमतौर पर लोग एक से ज़्यादा भाषाएँ बोलते हैं। वे अपनी मातृभाषा के साथ-साथ दूसरी भाषा का भी इस्तेमाल करते हैं।
द्विभाषी होना बेहतर दवा
एडिनबरा यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ फिलॉसॉफ़ी, साइकॉल्जी एंड लेंग्वेज साइसेंज़ के टॉमस बाक कहते हैं,जिस तरह तैराकी से पूरे शरीर की ट्रेनिंग होती है, उसी तरह दो भाषाएं बोलना दिमाग की पूरी तरह ट्रेनिंग करा देता है।
उनका कहना है कि अध्ययनों से पता चलता है कि डिमेंशिया पर द्विभाषिता का असर मौजूदा प्रचलित दवाओं की तुलना में यादा बेहतर होता है। यह अध्ययन अमरीकन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी की मेडिकल पत्रिका न्यूरॉलॉजी में प्रकाशित हुआ।

 

 

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