पाकिस्तानी सेना के नए प्रमुख होंगे राहील शरीफ

इस्लामाबाद ,कई सप्ताह से चली आ रही अटकलों पर विराम लगाते हुए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने बुधवार को लेफ्टिनेंट जनरल राहील शरीफ को थलसेना प्रमुख के ताकतवर पद पर नियुक्त किया है। थलसेना के सबसे वरिष्ठ जनरल को नजरंदाज करते हुए लेफ्टिनेंट जनरल शरीफ को सेना प्रमुख बनाया गया है।
लेफ्टिनेंट जनरल राशिद महमूद को वाइंट चीफ आफ स्टाफ कमेटी का नया अध्यक्ष बनाया गया है। अहम पदों पर दोनों सैन्य अधिकारियों की तरक्की को मंजूरी देने से पहले प्रधानमंत्री शरीफ ने चीफ ऑफ जनरल स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल महमूद और इंस्पेक्टर जनरल (प्रशिक्षण एवं मूल्यांकन) लेफ्टिनेंट जनरल शरीफ के साथ इस्लामाबाद में अलग-अलग बैठक की।
एक शीर्ष पाकिस्तानी अधिकारी ने बताया कि प्रधानमंत्री की सलाह पर और पाकिस्तान इस्लामी गणराय के संविधान के अनुछेद के उपबंध तीन के तहत राष्ट्रपति और सशस्त्र बलों के सर्वोच कमांडर दोनों जनरलों की तरक्की और तैनाती को मंजूरी देकर खुश हैं । दोनों नियुक्ति 28 नवंबर से प्रभावी होगी।
दोनों जनरल को लेफ्टिनेंट जनरल हारून इस्लाम पर तरजीह दी गयी है, जो इस वक्त कयानी के बाद सबसे वरिष्ठ जनरल हैं और चीफ ऑफ लॉजिस्टिक्स स्टाफ के पद पर हैं। वह अप्रैल में सेवानिवृत होने वाले हैं। लेफ्टिनेंट जनरल शरीफ 61 साल के जनरल अशफाक परवेज कियानी की जगह लेंगे जो छह साल तक सेना की कमान संभालने के बाद आने वाले शुक्रवार को सेवानिवत होंगे।
सैन्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले लेफ्टिनेंट जनरल शरीफ अपने शौर्य के लिए देश के प्रतिष्ठित निशान-ए-हैदर सम्मान हासिल करने वाले शब्बीर शरीफ के भाई हैं, जो 1971 में भारत के साथ युद्ध में मारे गए थे।
कहा जाता है कि लेफ्टिनेंट जनरल शरीफ के पूर्व सेना प्रमुखों और शीर्षस्थ अधिकारियों के साथ ही लाहौर की सियासत में गहरा दखल रखने वालों से बहुत अछे ताल्लुकात हैं। उन्होंने मेजर जनरल के रूप में लाहौर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग के तौर पर भी अपनी सेवाएं दी हैं। उन्हें ऐसे वक्त में नियुक्त किया गया है जब पाकिस्तान के लिए काफी अहम समय है।
नए सेना प्रमुख को ऐसे समय में कार्यभार सौंपा गया है, जब अफगानिस्तान से विदेशी सेनाएं वापस लौट रही हैं और पाकिस्तानी तालिबान तथा नवाज शरीफ सरकार के बीच बातचीत का खेल चल रहा है।
भारत के साथ सरकार के राजनयिक दांवपेच के साथ ही उन्हें अमेरिका, चीन और खाड़ी देशों के साथ रिश्तों की नैया पार लगानी है और घरेलू मोर्चे पर भी कई चुनौतियों का सामना करना है।
लेफ्टिनेंट महमूद ने लाहौर के कोर कमांडर के तौर पर अपनी सेवाएं दी हैं और वह पूर्व राष्ट्रपति रफीक तरार के सैन्य सचिव भी रहे हैं।
महमूद बलोच रेजीमेंट के हैं और उन्होंने आईएसआई के उप महानिदेशक के तौर पर जनरल कयानी के मातहत काम किया है। महमूद के नवाज परिवार के साथ अछे रिश्ते हैं और वह कयानी के विश्वासपात्रों में एक हैं। उन्हें कयानी का दाहिना हाथ कहा जाता है। पांच चीफ आफ जनरल स्टाफ याहिया खान, गुल हसन खान, मिर्जा असलम बेग, आसिफ नवाज और जहांगीर करामात सेना प्रमुख के पद तक पहुंचे, जबकि तीन अन्य अजीज खान, तारिक माजिद और खालिद खमीम वायन सीजेसीएससी बने।
कयानी को पूर्व सैनिक शासक जनरल परवेज मुशर्रफ ने 2007 में सेना प्रमुख के तौर पर चुना था। उन्हें प्रधानमंत्री युसुफ रजा जिलानी ने 2010 में तीन वर्ष का अभूतपूर्व कार्य विस्तार दिया। पाकिस्तानी सेना प्रमुख को चुनना असैनिक सरकार के लिए आसान काम नहीं है और इस मामले में धोखा खा चुके शरीफ के लिए तो बिलकुल नहीं। यह चौथा मौका है, जब शरीफ ने किसी सेना प्रमुख का चयन किया है। उन्होंने 1993 में अब्दुल वहीद काकर को सेना प्रमुख बनाया, लेकिन उन्होंने शरीफ को धोखा दे दिया और एक समय तो ऐसा आया, जब उन्होंने शरीफ को इस्तीफे के रास्ते तक ले जाने में अहम भूमिका निभाई। काकर को कम से कम चार वरिष्ठ जनरल पर तरजीह दी गई थी। 1998 में शरीफ ने कम से कम दो जनरलों पर परवेज मुशर्रफ को तरजीह दी, लेकिन उन्होंने 1999 में कारगिल संघर्ष की साजिश रचने के साथ ही उसी साल प्रधानमंत्री के खिलाफ बगावत को हवा दी।
अक्टूबर 1999 में शरीफ ने जियाउद्दीन बट्ट को चुना, लेकिन मुशर्रफ की फैलाई बगावत के कारण वह शपथ नहीं ले पाए।

 

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