जाट कोटे के फैसले में दखल से SC का इनकार

जाट समुदाय को ओबीसी लिस्ट में शामिल किए जाने के केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन पर स्टे की मांग को सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दिया है। सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा गया कि चुनाव आचार संहिता लागू होने से ठीक एक दिन पहले केंद्र सरकार ने जाट समुदाय को ओबीसी की सेंट्रल लिस्ट में डाल दिया और यह राजनीति से प्रेरित है। ऐसे में इस पर स्टे किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने स्टे से मना करते हुए सभी पक्षों से तमाम रेकॉर्ड पेश करने के लिए कहा और अगली सुनवाई के लिए 1 मई की तारीख तय कर दी।
इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से पेश रेकॉर्ड को देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में दस्तावेजों को देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि फैसले के पीछे कुछ न कुछ आधार है। हालांकि कोर्ट इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहा। हम तमाम दस्तावेजों को अगली सुनवाई के दौरान देखेंगे। अदालत ने केंद्र से कहा कि वह अगली सुनवाई के दौरान काउंटर एफिडेविट दाखिल करें।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट के. के. वेणुगोपाल ने दलील दी कि मौजूदा केंद्र सरकार ने आम चुनाव को देखते हुए जाटों को बैकवर्ड क्लास के सेंट्रल लिस्ट में डाला, ताकि समुदाय विशेष का वोट लिया जा सके। ऐसे में इस बारे में जारी नोटिफिकेशन को खारिज किया जाए क्योंकि सरकार का फैसला राजनीति से प्रेरित है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार चुनाव आचार संहिता लागू होने से एक दिन पहले अगर कोई फैसला लेता है तो उसमें दखल नहीं दिया जा सकता। हम यह नहीं कह सकते कि आप एक दिन पहले फैसला नहीं ले सकते। सुप्रीम कोर्ट ने नोटिफिकेशन पर रोक से इनकार कर दिया।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि नैशनल कमिशन फॉर बैकवर्ड क्लासेस (एनसीबीसी) ने जाट समुदाय को बैकवर्ड क्लास में शामिल करने की सिफारिश नहीं की थी। बावजूद इसके केंद्र सरकार ने 4 मार्च, 2014 को नोटिफिकेशन जारी किया और इसके तहत हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश, यूपी, दिल्ली, बिहार, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश व राजस्थान के भरतपुर और धौलपुर के लिए जाट कम्यूनिटी को बैकवर्ड क्लास की सेंट्रल लिस्ट में डाल दिया। एनसीबीसी के पास अधिकार है कि वह ओबीसी लिस्ट के बारे में सिफारिश करे और फिर केंद्र सरकार फैसला ले।
इस पर केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि केंद्र के पास अधिकार हैं कि वह सिफारिश के बगैर भी फैसला ले सकती है। इस पर सेक्शन-9 का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि आमतौर पर एनसीबीसी के सुझाव के हिसाब से ही केंद्र का फैसला होता है और परंपरा रही है कि अभी तक सिफारिश को रिजेक्ट नहीं किया गया था। याचिकाकर्ता ने कहा कि जाटों को ओबीसी लिस्ट में डाले जाने के कारण ओबीसी लिस्ट में पहले से मौजूद समुदाय को नुकसान पहुंचा है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां तक एनसीबीसी की सिफारिश का सवाल है तो वह भी सरकार का ही एक विंग है।उनका काम है सुझाव देना और केंद्र का काम है फैसला लेना। हम देखना चाहते हैं कि किस बेसिस पर यह फैसलालिया गया। अदालत ने केंद्र सरकार के वकील से कहा है कि वह इस मामले से संबंधित तमाम दस्तावेज अदालत केसामने पेश क रें।

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