सोनिया द्वारा संप्रग-2 को चलाने का दावा चिदंबरम ने किया खारिज

12_04_2014-12Chidambaram1नई दिल्ली। संप्रग-एक के कार्यकाल में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे वरिष्ठ पत्रकार संजय बारू की किताब से उठे सियासी भूचाल को थामने के लिए कांग्रेसी नेताओं को सफाई पेश करनी पड़ रही है। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने शनिवार को संप्रग-दो को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा संचालित करने के दावों को खारिज किया।

अपनी किताब ‘द एक्सिटेंडल प्राइम मिनिस्टर-द मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ मनमोहन सिंह’ में बारू ने लिखा है कि सोनिया ने प्रधानमंत्री की कुर्सी तो सौंपी, लेकिन उसकी ताकत नहीं दी। उन्होंने कहा कि यह बात किसी से छिपी नहीं थी कि सोनिया ने सरकार की बागडोर थाम रखी थी, जिसका पूर्व कैबिनेट सचिव टीएस सुब्रमण्यम भी समर्थन कर चुके हैं। यह पूछे जाने पर क्या सरकार का नियंत्रण सोनिया के हाथ में हैं? चिदंबरम ने कहा, ‘नहीं मैं इससे सहमत नहीं हूं।’ पिछले दस वर्षो के दौरान क्या कभी ऐसा मौका आया जब प्रधानमंत्री को किसी बात की मंजूरी के लिए दस जनपथ जाना पड़ा? वित्त मंत्री ने कहा कि पिछले दस वर्षो में प्रधानमंत्री ने कभी भी उन्हें यह नहीं बताया कि उन्हें निर्णय करने के लिए किसी से पूछने जाना पड़ा। उन्होंने कहा, ‘हमारी पार्टी लोकतांत्रिक पार्टी है। फैसले बड़ी संख्या में लिए जाते हैं। कुछ फैसले सरकार के भीतर लिए जाते हैं जबकि कुछ पार्टी से सलाह करने के बाद लिए जाते हैं। यह राजनीतिक पार्टी की सरकार है।’

सोनिया को खुश करने में लगे रहते थे मंत्री :-

बारू की किताब के मुताबिक संप्रग-1 के कार्यकाल के दौरान केंद्रीय ग्रामीण मंत्री जयराम रमेश की तरह कई अन्य नेता सिर्फ सोनिया गांधी के प्रति वफादार थे न ही मनमोहन सिंह के प्रति। जयराम ने प्रधानमंत्री को शर्मिदा करने के लिए सोनिया द्वारा मनमोहन को लिखे गए गोपनीय पत्र को मीडिया में लीक कर दिया था। बारू ने लिखा है कि कांग्रेसी सांसद सोनिया को खुश करने में लगे रहते थे। वे कभी भी प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी निष्ठा नहीं दिखाते थे और न ही प्रधानमंत्री ने राजनीतिक जरूरत के तहत भी उनसे इसकी अपेक्षा दिखाई। जयराम की वफादारी मंत्री बनने के कुछ दिनों बाद ही सामने आ गई थी जब उन्होंने सोनिया द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे पत्र को सार्वजनिक कर दिया था। दरअसल, कांग्रेस अध्यक्ष एशियाई देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते [एफटीए] के पक्ष में नहीं थी जबकि मनमोहन इसे लागू करना चाहते थे। पत्र में सोनिया ने भारतीय किसानों व अन्य उद्योगों से जुड़े लोगों पर दुष्प्रभावों की आशंका जताते हुए इस नीति की समीक्षा करने को कहा था।

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