उत्तराखंड सरकार पर खतरे को लेकर कांग्रेस बेचैन
देहरादून, लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद उत्तराखंड सरकार की स्थिरता पर खतरे के किसी भी अंदेशे को लेकर कांग्रेस में अंदरखाने बेचैनी बढ़ गई है। बाहरी तौर पर मुख्यमंत्री हरीश रावत व पार्टी के आला नेता भले ही सरकार पर संकट को भारतीय जनता पार्टी की हेकड़ी करार दे रहे हों, लेकिन इस संकट को लेकर चर्चाएं गरम होने से सरकार व संगठन के रणनीतिकार सियासी हालात पर नजरें गड़ाए हुए हैं।
कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे सतपाल महाराज के भाजपा में जाने के बाद से प्रदेश की हरीश रावत सरकार पर संकट मंडराने का अंदेशा जताया जा रहा है। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा प्रदेश सरकार की स्थिरता को मुद्दा बनाने से नहीं चूकी। वहीं, मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी लोकसभा चुनाव के लिए मतदाताओं से की गई अपील में सरकार पर संकट के मुद्दे को भुनाने की कोशिश की गई। अब मतदान खत्म होने व चुनाव नतीजे आने में तीन दिन शेष रहते हुए सियासी हलकों में सरगर्मी बढ़ गई है।
सूत्रों के मुताबिक, मुख्यमंत्री हरीश रावत व उनके करीबी पार्टी विधायकों के साथ ही सरकार को सहयोग दे रहे दलों के विधायकों व निर्दलीय विधायकों की गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं। फिलहाल विधानसभा के भीतर की स्थिति कांग्रेस के पक्ष में है। कांग्रेस के पास 33 विधायक हैं, जबकि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के तीन, निर्दलीय चार और उक्रांद के एक विधायक का समर्थन उसे प्राप्त है। वैसे भी कांग्रेस बसपा विधायक दल में टूट की स्थिति पैदा कर चुकी है। बसपा के दो विधायक कांग्रेस के पाले में बताए जाते हैं। वहीं, निर्दलीय विधायकों की ओर से गठित किए गए पीडीएफ में भी कांग्रेस सेंध लगा चुकी है। चार विधायकों में दो विधायक कांग्रेस के पक्ष में सीधे-सीधे खड़े हैं, जबकि अन्य दो विधायकों ने फिलहाल कांग्रेस की मुखालफत या किसी भी तरह की गतिविधि से परहेज किया है।
सूत्रों के मुताबिक, मौजूदा स्थिति में 40 में 37 विधायकों को कांग्रेस अपने पाले में ही देख रही है। सतपाल खेमे के विधायकों के दल-बदल कानून के दायरे में आने व पार्टी छोड़ने की स्थिति में दोबारा चुनाव लड़ने की नौबत की वजह को कांग्रेस अपने पक्ष में देख रही है। इसके बावजूद विपक्ष की ओर से उछाले गए इस मुद्दे के चलते मुख्यमंत्री हरीश रावत व उनके करीबियों की ओर से तकरीबन हर दिन विधायकों की टोह ली जा रही है। अब देखना यह है कि 16 मई को चुनाव नतीजे घोषित होने के बाद सरकार पर खतरे की अटकलें किस करवट बैठती हैं।
त्यागपत्र की बाध्यता नहीं: कुरैशी
रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून। केंद्र की मौजूदा संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार बदलने की संभावनाओं के बीच कांग्रेसी मूल के राज्यपालों के भविष्य को लेकर चल रही अटकलों पर उत्तराखंड के राज्यपाल डा. अजीज कुरैशी ने विराम लगाने की कोशिश की। कुरैशी ने पद से त्यागपत्र देने से इन्कार करते हुए कहा कि इसकी जरूरत नहीं है। साथ ही, कहा कि राहुल गांधी दो साल पहले प्रधानमंत्री बनते तो देश के हालात कुछ और होते।
‘दैनिक जागरण’ से विशेष मुलाकात में डा कुरैशी ने कहा कि राज्यपाल का पद संवैधानिक है। पद पर बैठा व्यक्ति गरिमा के अनुकूल ही आचरण करता है, भले ही वह पद पर नियुक्ति से पहले किसी भी दल या विचारधारा से जुड़ा रहा हो। पद पर रहते हुए उन्होंने पार्टी व विचारधारा से परे हटकर अंतरात्मा की आवाज पर सदैव राजधर्म का पालन किया। भाजपा नेताओं को भी शायद ही कभी पक्षपात महसूस हुआ हो। राज्यपाल ने कहा कि देश में इस वक्त ऐसे नेता की कमी है, जो कश्मीर से कन्याकुमारी तक लोगों के दिलों को छूता हो। जवाहरलाल नेहरू, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई पटेल, इंदिरा गांधी व अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं की देश को सख्त जरूरत है।
Comments are closed.