उपचुनाव में टिकट बंटवारे को लेकर उत्तर प्रदेश भाजपा में बवाल

amitshahm

लखनऊ, बिजनौर में पर्चा दाखिल करने पहुंचे भाजपा कार्यकर्ता आपस में भिड़ गए वहीं नोएडा में नामांकन जुलूस शामिल होने के लिए गिनती के भाजपाई जमा हो सके। सबसे अधिक तनावपूर्ण माहौल ठाकुरद्वारा व निघासन में नजर आया। वहां सांसदों की गैरहाजिरी संगठन का असंतोष जाहिर कर रही थी। सहारनपुर में महानगर संगठन का विरोध अखर रहा था तो लखनऊ पूर्वी के कार्यकर्ताओं में पहले जैसा उत्साह न था। आंतरिक असंतोष जाहिर न होने देने के लिए उम्मीदवारों की सूची विलम्ब से जारी करने का फामरूला कारगर नहीं रहा। चुनाव प्रचार के पहले दिन गुटबाजी सतह पर आ गई।

बिजनौर में सांसद भारतेंद्र सिंह और टिकट नहीं पा सके राजेंद्र सिंह के समर्थक भिड़ गए। बिजनौर सीट बचाए रखना इस मर्तबा आसान नहीं माना जा रहा क्योंकि सपा ने चुनाव हिंदू बनाम मुस्लिम होने से बचाने के लिए वैश्य समाज की महिला प्रत्याशी को मैदान में उतारा है। बसपा व रालोद का चुनाव से दूर रहना भाजपा भले शुभ माने परन्तु नामांकन के दौरान गुटबाजी के उभर आने को खतरे की घंटी माना जा रहा है।

सहारनपुर में प्रत्याशी राजीव गुम्बर का विरोध पार्टी स्तर पर पहले ही दिन दिखा। सांप्रदायिक तनाव से गुजर रहे सहारनपुर में भाजपा को वापसी की उम्मीद है, लेकिन असंतोष को जल्द नहीं निपटाया तो बात सीट निकालना दुश्वार हो सकता है। निघासन में सांसद अजय टेनी का रामकुमार वर्मा को पर्चा भरवाने के लिए मौजूद न रहना भी चर्चा का विषय है। मैनपुरी संसदीय क्षेत्र में प्रेम सिंह शाक्य को भी नामांकन पत्र जमा करते समय अपनों का ही विरोध झेलना पड़ा।

हमीरपुर में ब्राह्मण प्रत्याशी उतारने का फैसला पिछड़ों व अतिपिछड़ों को हजम नहीं हो पा रहा तो ब्राह्मणों के टिकट कोटे में कमी करना भी भाजपा को भारी पड़ सकता है। भाजपा के लिए सभी सीटों को बचाए रखना बेहद जरूरी है क्योंकि उत्तराखंड के बाद बिहार व अन्य प्रदेशों में मोदी मैजिक की जिस तरह हवा निकली है। उसको यूपी में बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह खुद प्रदेश प्रभारी का दायित्व संभाले हुए हैं। उपचुनाव जीतने के लिए भाजपा ने अपना दल से गठबंधन को बनाए रखा है, लेकिन पहले ही दिन जिस तरह आंतरिक असंतोष सामने आया, उसके चलते पार्टी को पिछला प्रदर्शन दोहरा पाना संभव नहीं दिख रहा।

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