पार्टियां नहीं चाहतीं महिलाओं की हुकूमत
नई दिल्ली, सियासत में महिलाओं को पुरुषों के बराबर दर्जा देने की पुरजोर वकालत करने वाले राजनीतिक दलों को चुनाव में टिकट बंटवारे के दौरान मानो सांप सूंघ जाता है। पुरुषों द्वारा जीत दर्ज करने की क्षमता की दलील देकर महिलाएं पीछे धकेल दी जाती हैं और उन्हें भागीदारी का मौका ही नहीं मिलता। महिलाओं को बराबर हक देने के कागजी दावों की पोल दिल्ली विधानसभा के इन चुनावों में भी खुल रही है।
गत लोकसभा चुनाव में भी महिलाओं की घोर उपेक्षा हुई थी। अब इस विधानसभा चुनाव में भी वही कहानी दोहराई जा रही है। आंकड़ों की बात करें तो कुल 673 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, इनमें केवल 63 महिलाएं हैं। नरेला, बादली, रिठाला, बवाना, किराड़ी, सुल्तानपुर माजरा आदि कई ऐसी सीटें हैं जहां महिला प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में दिल्ली में 71 महिलाएं चुनाव मैदान में थीं।
कांग्रेस की महिला प्रत्याशी
कांग्रेस ने 70 में से केवल 5 सीटों पर ही महिलाओं को चुनाव मैदान में उतारा है। इसमें नई दिल्ली सीट से प्रो. किरण वालिया, ग्रेटर कैलाश से शर्मिष्ठा मुखर्जी, गोकलपुर सीट से रिंकू, मुंडका से रीता शौकीन व राजौरी गार्डन से मीनाक्षी चंदीला शामिल हैं।
भाजपा की महिला प्रत्याशी
भाजपा ने 8 महिलाओं को चुनाव मैदान में उतारा है। इसमें कृष्णा नगर सीट से डॉ. किरण बेदी, नई दिल्ली सीट से नूपुर शर्मा, तिमारपुर से प्रो. रजनी अब्बी, शालीमार बाग से रेखा गुप्ता, पटेल नगर से कृष्णा तीरथ, त्रिलोकपुरी से किरण वैद्य, महरौली से सरिता चौधरी व मालवीय नगर से नंदिनी शर्मा शामिल हैं।
आम आदमी पार्टी की महिला प्रत्याशी
आम आदमी पार्टी ने 6 महिलाओं को टिकट दिया है। इसमें मंगोलपुरी से राखी बिड़ला, चांदनी चौक से अल्का लांबा, आरकेपुरम से प्रमिला टोकस, रोहताश नगर से सरिता, पालम से भावना गौड़ व शालीमार बाग से बंदना कुमारी शामिल हैं।
अन्य महिला प्रत्याशी
बहुजन समाज पार्टी ने भी केवल 6 महिलाओं को टिकट दिया है। सीपीआइ ने 5 प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं, मगर कोई भी महिला प्रत्याशी नहीं है। सीपीआइ (एम) ने केवल एक महिला को उम्मीदवार बनाया है। जबकि 37 महिलाएं निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में ताल ठोक रही हैं।
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